सरकार अब यह खुद तय करेगी कि कौन सी खबर सच्ची है और कौन सी खबर झूठी. इसके लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी नियमों में संसोधन करते हुए अधिसूचना जारी की है. इसी साल जनवरी में इस संशोधन का ड्राफ्ट पेश किया गया था और इस पर कथित तौर पर चर्चा आमंत्रित की गई थी, लेकिन मीडिया और विपक्ष को शामिल करके कोई चर्चा की गई हो, ऐसा कुछ संज्ञान में नहीं है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, मीडिया संस्थानों, प्रेस काउंसिल, पत्रकारों और विपक्ष को दरकिनार करते हुए एकतरफा ढंग से यह अधिसूचना जारी कर दी गई है.
अधिसूचना के जारी होने के बाद अब सरकार के पास यह अधिकार होगा कि वह किसी खबर को ‘फर्जी’ घोषित कर दे और उसे सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म से हटाने का आदेश दे दे. यह कानून सरकार को यह भी अधिकार देगा कि गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियां अगर सरकार के निर्देश पर कोई सूचना नहीं हटाती हैं तो सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है.
सूचना तकनीक मंत्रालय की ओर से लाए गए इस नए नियम के मुताबिक, सरकारी फैक्ट चेक संस्थान प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) के पास किसी खबर को फर्जी करार देकर उसे सभी प्लेटफॉर्म्स से हटवाने का अधिकार होगा. अगर प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो या सरकार के किसी अन्य फैक्ट चेक संस्थान को कोई खबर गलत लगती है तो प्रेस इन्फॉर्मेशन उस पर प्रतिबंध लगा सकता है. इस प्रतिबंध के बाद गूगल, फेसबुक, ट्विटर समेत सभी ऑनलाइन माध्यमों को वह सूचना हटानी होगी. जिस संस्थान की खबर हटवाई जाएगी, उसे ही यह सुनिश्चित करना होगा कि खबर हटने के बाद आगे उसका प्रसारण ना हो सके.
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बयान दिया है कि गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसी इंटरनेट कंपनियां अगर सरकारी फैक्ट चेक संस्थान द्वारा गलत या भ्रामक जानकारी के रूप में पहचानी गई सामग्री को हटाने में विफल रहती हैं तो वे सेफ हार्बर के तहत अपनी सुरक्षा खो सकती हैं.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इस पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि नए आईटी संशोधन नियम परेशान करने वाले हैं. इन संशोधनों का प्रेस की स्वतंत्रता पर उल्टा असर पड़ेगा. गिल्ड ने इन नियमों को वापस लेने और मीडिया संगठनों के साथ परामर्श करने के वादे पर अमल की अपील की है.
क्या कोई सरकार यह निर्धारित कर सकती है कि उसके बारे में क्या छपेगा? क्या सरकार यह तय कर सकती है कि उसके बारे में जो छपा है, वह सच है या झूठ? यह एक बेहद खतरनाक व्यवस्था होगी. यह ऐसा प्रयास है जिसे आपातकाल भी नहीं कह सकते. यह उससे आगे की बात है. आपातकाल एक ऐसी व्यवस्था है जिसका प्रावधान हमारे संविधान में है. उन प्रावधानों को लागू करने के औचित्य पर बात हो सकती है, जैसा कि इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल के बारे में होता है. लेकिन यह सरकार हमारे संविधान में दी गई सरकार की शक्तियों से परे, नई शक्तियां हासिल करने की कोशिश कर रही है ताकि वह खुद यह तय कर सके कि उसके खिलाफ क्या छपेगा और क्या नहीं छपेगा.
ऐसा उदाहरण आजाद भारत में नहीं मिलता, अंग्रेजी राज में जो खतरनाक सेंसरशिप नियम लागू होते थे, वे जरूर इस श्रेणी में आते हैं जिसके तहत अंग्रेज सरकार तय करती थी कि उसके खिलाफ क्या छपेगा और उसके उल्लंघन पर महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू समेत कई क्रांतिकारियों को सजाएं दी गई थीं.
अभी चंद दिनों पहले एक मलयाली चैनल पर प्रतिबंध के केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को लताड़ लगाई थी और प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व को विस्तार से रेखांकित किया था. कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार की आलोचना मीडिया का अधिकार है. यह सरकार उसी अधिकार को छीनना चाहती है क्योंकि बड़े स्तर पर मीडिया के मुंह में ताला लगा देने के बाद भी, छिटपुट आलोचनाएं सरकार को असहज करती रहती हैं.
आज जिस प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो को ‘सच’ तय करने का अधिकार दिया जा रहा है, उसका फैक्ट चेक करने का रिकॉर्ड बेहद हास्यास्पद है. मीडिया के लोग जानते हैं कि दर्जनों बार ऐसा हुआ है जब प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ने किसी खबर को फेक न्यूज बताया और बाद में उसी खबर को सरकार की तरफ से स्वीकार किया गया है जैसे- देश में 45 साल में रिकॉर्ड बेरोजगारी की खबर या फिर लद्दाख में चीनी घुसपैठ की खबर. इन खबरों को प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ने गलत करार दिया और बाद में सरकार ने खुद इसके सच होने को प्रमाणित किया.
दरअसल, यह फेक न्यूज पर लगाम लगाने के बहाने मीडिया से वह अधिकार भी छीन लेने की कोशिश है जिसके तहत कई वैकल्पिक मीडिया संस्थान, यूट्यूब चैनल और निजी स्तर पर लोग सरकार की आलोचनाएं करते हैं. यह ऐसी लोकतंत्र विरोधी सरकार है जिसे छद्म मीडिया, छद्म विपक्ष और छद्म लोकतंत्र भी नहीं चाहिए. सरकार चाहती है कि देश के 140 करोड़ लोग मिलकर एक व्यक्ति की पूजा करें, एक विचार को धारण करें और एक पार्टी का भजन करें.