आदिवासियों के महान पर्व करम प्रकृति पर आधारित : जालेश्वर उरांव

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लोहरदगा: राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा भारत के राष्ट्रीय महासचिव जलेश्वर उराँव ने आगामी 14 सितंबर 2024 को करम दर्शन की एक झलक पर पूरे लोहरदगा जिलावासियों, पाहन, महतो, पूजार पाईनभोरा एवं समस्त ग्रामवासी को
प्रकृति महापर्व करम पूजा की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं देते हुये करम त्योहार क्यों मनाते हैं उस पर प्रकाश डाले। जालेश्वर उरांव ने बताया कि आदिवासियों के महान पर्व करम प्रकृति पर आधारित है। खरीफ फसल उग आने की खुशी एवं प्रकृति से जुड़े रहने की प्रेरणा देती है। आदिवासी समुदाय के लोग आनंद उत्सव के साथ लगभग सभी राज्यों के अलावे नेपाल बांग्लादेश भूटान में मनाई जाती है। करम पर्व एक ओर प्रकृति की संरक्षण तो दूसरी और नैतिक कर्तव्य का बोध कराती है। करमा – धरमा कहानी के माध्यम से मनुष्यों के जड़ एवं चेतन के संतुलित भाव का भाव दर्शाती है। करमा का अर्थात शरीर से मनुष्य जो काम करता है। धरमा की अर्थात जीव आत्मा की शुद्धता से है। सभ्यता की प्रथम पायदान में अग्नि के बाद अन्न के रूप में “जौ एवं मकई” के खेती की। जो प्रतीक रूप में (जावा खोपना) धर्मेस का चढ़ावा और श्रृंगार किया जाता है। दूसरी तरफ करम वृक्ष शीतलता एवं 24 घंटे ऑक्सीजन का उत्सर्जन करती है, माना जाता है कि करम वृक्ष पर करम देव का वास है। करमा-अर्थात कर्म मनुष्य के अंदर अहंकार एवं कर्तव्य से भटक जाने पर दुख अशांति गरीबी का दंश झेलना पड़ता है। धरमा-अर्थात आत्मा के शुद्धि से मनुष्य के सुख शांति में वृद्धि एवं गरीबी से मुक्ति का बोध कराती हैं। आत्म शुद्धता प्रकृति के समन्वय एवं संरक्षण से ही सृष्टि बच सकती है। विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन पूरे विश्व में अकाल, बाढ़, महामारी, भूकंप, ग्लोबल वार्मिंग एवं प्रदूषण वायु से सभी जीव तबाह हो रही है। ऐसे में करम पर्व का प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। और करमदेव की महिमा अपार है।