महाकुंभ : 33 दिनों में देश की 33 फीसदी आबादी ने लगायी आस्था की डुबकी, चार लाख करोड़ के आर्थिक लाभ का अनुमान

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Eksandeshlive Desk

महाकुंभ नगर : महाकुंभ के 33 दिनों में देश की 33 फीसदी आबादी पवित्र संगम में आस्था की डुबकी लगा चुकी है। 14 फरवरी रात आठ बजे मेला प्रशासन ने श्रद्धालुओं का जो आंकड़ा प्रसारित किया, उसके अनुसार अब तक 50.11 करोड़ महाकुंभ में शामिल हो चुके हैं। वर्तमान में भारत की आबादी 145 करोड़ है। इस हिसाब से देश की 33 फीसदी से ज्यादा आबादी अब तक पवित्र संगम की धरती पर आ चुकी है। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुये यह आंकड़ा 55-60 करोड़ बीच रहने का अनुमान है। 13 जनवरी से महाकुंभ की शुरुआत हुई थी, जिसका आखिरी स्नान महाशिवरात्रि यानी 26 फरवरी को किया जाएगा।

साल 1882 में 144 साल पहले महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में हुआ था। तब 10 लाख श्रद्धालु महाकुंभ में स्नान करने पहुंचे थे। यह उस समय की कुल आबादी का 0.6 फीसदी था। रिकॉर्ड डॉक्यूमेंट के अनुसार उस समय देश की कुल आबादी करीब 25 करोड़ थी। महाकुंभ की शुरूआत 13 जनवरी पौष पूर्णिमा को हुई। अब तक तीन अमृत स्नान और दो विशेष स्नान हो चुके हैं। 26 फरवरी को शिवरात्रि का स्नान अभी शेष है। 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा को 1.7 करोड़, 14 जनवरी मकर संक्राति (पहला अमृत स्नान) को 3.5 करोड़, 29 जनवरी (दूसरा अमृत स्नान) मौनी अमावस्या को 8 करोड़, 3 फरवरी (तीसरा और अंतिम अमृत स्नान) को 2.57 करोड़ और 12 फरवरी माघी पूर्णिमा के दिन 1.7 करोड़ ने संगम में पुण्य की डुबकी लगायी। प्राय: यह माना जाता है कि बसंत पंचमी के बाद मेले का उतार शुरू हो जाता है। लेकिन बंसत पंचमी के स्नान के दो दिन बाद 6 फरवरी से श्रद्धालुओं का जो रेला प्रयागराज पहुंचना शुरू हुआ, उसने मेले में फिर से प्राण फूंक दिये। श्रद्धालुओं की लगातार बढ़ती संख्या ने इतिहास का निर्माण तो किया ही, वहीं नये कीर्तिमान भी स्थापित किये। मेला शुरू होने से पूर्व सरकार का अनुमान था कि इस बार मेले 40-45 करोड़ श्रद्धालु आएंगे। लेकिन सनातन के प्रति उमड़े उत्साह और गहरी आस्था ने सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिये।

महाकुंभ 2025 को अर्थशास्त्रियों की नजर से देखें तो कुंभ अब धार्मिक आयोजन के साथ आर्थिक आयोजन के तौर पर भी उभर कर सामने आया है। 2013 में हुए महाकुंभ 1300 करोड़ रुपये खर्च किये गये थे, जबकि 2019 में लगे अर्द्धकुंभ में यह बजट बढ़ाकर तीन गुना बढ़कर 4200 करोड़ रुपये हो गया था। लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर एमके अग्रवाल के अनुसार, 2025 के महाकुंभ के आयोजन के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर 7000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। प्रदेश सरकार को कुंभ के खत्म होने तक दो लाख करोड़ से अधिक का आर्थिक फायदा होगा। इतना ही अनुमानित फायदा केंद्र सरकार को भी होने का अनुमान है।

पहली बार अंग्रेजों ने करायी थी गिनती : श्रद्धालुओं का संगम की धरती पर आना लगातार जारी है। ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है कि इस धार्मिक आयोजन में स्नान करने वालों यानी भीड़ के आंकड़े जुटाए कैसे जाते हैं? प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए अब अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन भीड़ के आंकड़े पहले भी आया करते थे और स्नान पर्वों पर भीड़ के तमाम रिकॉर्ड बनते और टूटते रहे हैं। आंकड़ों पर सवाल भी हमेशा उठते रहे हैं। इतिहास के पन्ने में उल्लेखित रिकॉर्ड के मुताबिक कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की पहली बार गिनती ब्रिटिश हुकूमत ने सन 1882 में की थी। उस वक्त प्रयागराज कुंभ में आने वाली हर सड़क पर बैरिकेड्स लगा दिए जाते थे। फिर हर आने वाले की गिनती होती थी। रेलवे स्टेशन के टिकट को भी जोड़ा जाता था। उस कुंभ में करीब 10 लाख लोग शामिल हुए थे। इसके बाद यह संख्या हर कुंभ में बढ़ती चली गई, लेकिन, गिनती का तरीका यही रहा।

कैसे हो रही है अब गिनती : महाकुंभ-2025 हाईटेक हो गया है। डिजिटल कैमरों के जरिए गिनती करना थोड़ा-सा आसान हुआ है। मेला प्रशासन ने पूरे शहर में 2700 कैमरे लगाए हैं। इनमें 1800 कैमरे मेला क्षेत्र में लगे हैं। 1100 स्थाई और बाकी के 700 अस्थाई कैमरे हैं। 270 से ज्यादा कैमरे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई से लैस हैं। इन कैमरों की रेंज में जैसे ही कोई व्यक्ति आता है, उसकी गिनती हो जाती है। ये स्टेशन, मेला क्षेत्र के एंट्री पॉइंट, संगम एरिया और अखाड़ों के साइड में लगाए गए हैं। एआई बेस्ड कैमरे मिनट दर मिनट आंकड़े अपडेट करते हैं। मेला एसएसपी और मेला अधिकारी की मानें तो एआई कैमरे भीड़ की गिनती करने में इस बार अहम भूमिका निभा रहे हैं। मेला प्रशासन भीड़ की कुल तीन तरह से गिनती करता है। पहला-मेला क्षेत्र में कितने लोग मौजूद हैं? दूसरा-कितने लोग चल रहे हैं? तीसरा-कितने लोग स्नान कर रहे हैं? जो व्यक्ति मेले में मौजूद हैं, वह दिन में एक बार काउंट होगा। लेकिन अगर वही अगले दिन फिर आता है तो वह दोबारा भी काउंट होगा। पहली बार एआई के जरिए गिनती की जाती है। यह एक इमर्जिंग टेक्नोलॉजी है, जिसका पहली बार इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हो रहा है। करीब 225 एआई कैमरे लगे हैं। जो भी इसकी रेंज में आता है, उसकी गिनती होती है। मेला क्षेत्र में और मेला क्षेत्र में पहुंचने वाले रास्तों पर इन्हें लगाया गया है। इसके अलावा पुराने तरीके से भी गिनती हो रही है, वह गणित के एक फॉर्मूले के आधार पर की जा रही है। हालांकि कोई भी तरीका किसी भी जगह सौ प्रतिशत एरर फ्री नहीं होता।

शहर में प्रवेश करने वाली भीड़ : गिनती का एक तरीका शहर में प्रवेश करने वाली भीड़ से जुड़ा है। जैसे प्रयागराज शहर में प्रवेश करने के कुल सात प्रमुख रास्ते हैं। प्रमुख स्नान पर्व पर गाड़ियों को रोका जाता है। उस दिन शहर के अंदर प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति को यह माना जाता है कि वह कुम्भ में शामिल होने आया है। यही भीड़ मेला क्षेत्र में कुल 12 रास्तों से पहुंचती है। वहां भी क्षेत्रफल, घनत्व को मानक बनाकर एक मीटर में प्रति घंटे गुजरती भीड़ को आधार मानकर गिनती होती है। बाहर से आने वाले लोगों की संख्या के बाद ट्रेन से आने वाले लोगों की संख्या जोड़ी जाती है। मेले के लिए बनाई गई पार्किंग में खड़ी गाड़ियों को जोड़ा जाता है।

भीड़ की गिनती का सांख्यिकीय तरीका : कुंभ में पहली बार साल 2013 में सांख्यिकीय विधि से भीड़ का अनुमान लगाया गया था। इस विधि के अनुसार एक व्यक्ति को स्नान करने के लिए करीब 0.25 मीटर की जगह चाहिए और उसे नहाने में करीब 15 मिनट का समय लगेगा। इस गणना के मुताबिक एक घंटे में एक घाट पर अधिकतम साढ़े बारह हजार लोग स्नान कर सकते हैं। इस बार कुल 44 घाट बनाए गए हैं, जिनमें 35 घाट पुराने हैं और नौ नए हैं। मेला क्षेत्र में पहले से मौजूद साधु-संत और कल्पवासियों को भी सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले आंकड़े में शामिल किया जाता है। हालांकि जो लोग शहर के ही होते हैं और गलियों के जरिए मेला क्षेत्र के घाटों तक पहुंचते हैं, उनकी गिनती नहीं हो पाती। वह अनुमानित संख्या में चले जाते हैं। जानकारों के मुताबिक हालांकि वास्तविक संख्या बता पाना अभी भी बहुत मुश्किल है, क्योंकि तमाम यात्री अलग-अलग जगहों से जाते हैं। यहां तक कि अलग-अलग घाटों पर भी जाते हैं। ऐसे में उनकी गिनती एक बार से ज्यादा ना हो, ऐसा कहना बहुत मुश्किल है।