अमेरिका ने अच्छा सिला नही दिया भारत के प्यार का! 

Editorial Ek Sandesh Live

मनोज कुमार अग्रवाल 

भारत ने रूस से कच्चा तेल की खरीद जारी रखने पर अमेरिका की धमकी को नजरअंदाज कर दिया है। अमेरिका ने रूस से तेल खरीदना जारी रखने पर भारत को जुर्माना भुगतने की धमकी दी थी । आपकों बता दें कि अमेरिका की जुर्माने की धमकी के चलते अगर भारत रूसी तेल को खरीदना बंद करता है तो उसे भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।

 विशेषज्ञों का कहना है कि रूस से तेल आयात यात बंद करने के बाद भारत का अमेरिका के दवाव के आगे झुकता नहीं दिख रहा है। 

भारत सरकार ने अपने तेल रिफाइनरों को रूसी कच्चे तेल की खरीद पर रोक लगाने का कोई आधिकारिक निर्देश नहीं दिया है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह फैसला ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के संतुलन को ध्यान में रखते हुए लिया गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर रूस पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर की गई आलोचना के बावजूद, भारत ने अब तक अपने तेल आयात नीति में कोई ठोस बदलाव नहीं किया है। भारत की रिफाइनरियां, चाहे वे सरकारी हों या निजी, तेल खरीद में वाणिज्यिक मानकों और कीमतों को प्राथमिकता देती हैं। सरकार ने उन्हें किसी विशेष आपूर्तिकर्ता से खरीदने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है.

आप को बता दे रूस, कच्चे तेल का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जिसका रोजाना का तेल उत्पादन करीब 9.5 मिलियन बैरल/प्रतिदिन है। यह वैश्विक मांग का करीब 10 प्रतिशत है। रूस, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश भी है, जो लगभग 4.5 मिलियन बैरल प्रति दिन कच्चा तेल और 2.3 मिलियन बैरल वार्षिक तेल आयात बिल 9-11 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। हालांकि प्रति दिन परिष्कृत उत्पादों का निर्यात करता है। साल 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूसी तेल के बाजार से बाहर होने की आशंका थी, जिससे वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ने की आशंका पैदा हो गई। भारत ने इसे अच्छा मौका समझा और इसे लपक लिया। फरवरी, 2022 के शुरू में भारत के कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी केवल 0.2 प्रतिशत थी। यूरोपीय बाजारों के दरवाजे बंद होने के बाद रूस से भारत को समुद्री निर्यात बढ़ने लगा। अब रूस से भारत कच्चे तेल का 35-40 प्रतिशत आयात कर रहा है। इससे भारत को खुदरा ईंधन की कीमतों को नियंत्रण में रखने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। भारत की तेल कंपनियां ने कुछ तेल घरेलू खपत के लिए रिफाइन करती हैं। बाकी को डीजल व अन्य उत्पादों के रूप में निर्यात किया। कुछ हिस्सा यूरोप को भी निर्यात किया गया। इससे भारतीय तेल कंपनियों को मुनाफा हो रहा है। ट्रंप के टैरिफ, रूस से तेल खरीदने पर जुर्माना लगने और यूरोपीय संघ के रूसी मूल के कच्चे तेल से बने परिष्कृत उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने से भारतीय रिफाइनरियों के लिए दोहरी मार पड़ सकती है। केप्लर के प्रमुख अनुसंधान विश्लेषक सुमित रिटोलिया इसे दोनों ओर से दवाव बताते हैं। उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ के प्रतिबंध जनवरी 2026 से प्रभावी होंगे। इससे भारतीय रिफाइनरों को कच्चे तेल का उपयोग करने से मजबूर किया जा सकता है। साथ ही अमेरिकी टैरिफ से भारत के रूसी तेल व्यापार को आधार देने वाली शिपिंग, बीमा और वित्तपोषण जीवन रेखा प्रभावित होगी। ये सभी उपाय भारत के कच्चे तेल की खरीद के लचीलेपन को तेजी से कम करते हैं। जोखिम को बढ़ाते हैं तथा महत्वपूर्ण लागत अनिश्चितता पैदा करते हैं। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने कच्चे तेल के आयात पर 137 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च किए। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और नायरा एनर्जी जैसे रिफाइनरों के लिए चुनौती गंभीर है। नायरा को रूसी तेल कंपनी रोसने ८ का समर्थन प्राप्त है और पिछले महीने यूरोपीय संघ ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया है। जबकि रिलायंस भी यूरोप के लिए एक बड़ी ईंधन निर्यातक रही है। केपलर के अनुसार दुनिया के सबसे बड़े डीजल निर्यातकों में से एक होने के नाते रिलायंस ने पिछले दो वर्षों में रिफाइनिंग मार्जिन को बढ़ाने के लिए रियायती रूसी कच्चे तेल का बड़े पैमाने पर उपयोग किया है। अब रिलायंस को या तो रूसी फीडस्टॉक के अपने सेवन को कम करना होगा। इससे लागत प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होगी या रूस से जुड़े उत्पादों को गैर-यूरोपीय संघ के बाजारों में भेजना होगा। केप्लर के प्रमुख अनुसंधान विश्लेषक सुमित रिटोलिया ने कहा कि डीजल निर्यात को दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका या लैटिन अमेरिका की ओर भेजा जाনা चाहिए। लेकिन इससे मार्जिन कम होगा। यात्रा समय अधिक लगेगा और मांग में परिवर्तनशीलता बढ़ेगी। केप्लर के आंकड़ों के मुताबिक जुलाई में भारत के रूसी कच्चे तेल के आयात में उलेखनीय गिरावट आई है। यह जून में 21 लाख बैरल प्रतिदिन की तुलना में 18 लाख बैरल प्रतिदिन हो गई है। यह गिरावट सरकारी रिफाइनरियों में ज्यादा हुई है। इसके अलावा निजी रिफाइनरियों ने भी जोखिम कम करना शुरू कर दिया है। अमेरिकी प्रतिबंधों को लेकर नए खरीद विविधीकरण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। रिटेलिया ने कहा कि यहां जोखिम केवल आपूर्ति का नहीं, बल्कि लाभ का भी है। रिफाइनरों को फीडस्टॉक की उच्च लागत का सामना करना पड़ेगा और मार्जिन पर भी दबाव होगा। भविष्य को लेकर केप्लर का मानना है कि भारत के जटिल निजी रिफाइनर मध्य पूर्व, पश्चिम अफ्रीका, लैटिन अमेरिका या यहां तक कि अमेरिका से गैर-रूसी बैरल की ओर रुख करेंगे। हालांकि रूसी बैरल को पूरी तरह से बदलना कोई आसान काम नहीं है। यह आर्थिक रूप से कष्टदायक और भू-राजनीतिक रूप से जोखिम भरा है। मान लें कि 18 लाख बैरल प्रतिदिन पर 5 डॉलर प्रति बैरल की छूट का नुकसान होता है, तो भारत का आयात बिल सालाना 9-11 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। अगर रूसी उपलब्धता कम होने के कारण वैश्विक स्थिर कीमतें और बढ़ती हैं तो लागत और भी बढ़ सकती है। इससे राजकोषीय दबाव बढ़ेगा। खासकर अगर सरकार खुदरा ईंधन की कीमतों को स्थिर करने के लिए कटिबद्ध हैं। हाल ही में राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत की रूस से तेल और रक्षा उपकरणों पर निर्भरता की तीखी आलोचना की थी और भारतीय वस्तुओं पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की थी. उन्होंने यह भी दावा किया था कि भारत रूसी तेल की खरीद रोकने जा रहा है, जिसे उन्होंने “सकारात्मक कदम” बताया था। लेकिन ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में इसका खंडन करते हुए कहा गया कि भारत ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया है.बहरहाल भारत को बिना किसी दबाव के स्वछंदता के साथ अपने हितों की रक्षा करनी ही चाहिए।