विपक्षी गठबंधन की एकता के दावे विधानसभा चुनावों में हवा हवाई दिखी

360° Editorial

क्रांति कुमार पाठक
हाल ही में देश के पांच राज्यों में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में विपक्षी एकता के लिए बनाए गए ‘इंडिया अलायंस’ बनने से पहले ही बिखरने के कगार पर आ गया है। लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन के प्रमुख दल सबसे प्रमुख राज्यों में आपस में ही संघर्ष करते नजर आए। कांग्रेस, जनता दल युनाइटेड, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी में सीट बंटवारे के लिए जबरदस्त तनाव देखने को मिला। इन दलों के नेता और कार्यकर्ता भी आपस में दंगल करते नजर आए। विधानसभा चुनाव में गैरभाजपा दलों की फूट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन का अंजाम क्या होगा। समाजवादी पार्टी ने तो अपने नेता अखिलेश यादव को प्रधानमंत्री उम्मीदवार तक घोषित कर दिया है, वहीं कांग्रेस के कार्यकर्ता ने अपने प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को उत्तर प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है। जाहिर इससे ‘इंडिया अलायंस’ का तालमेल बुरी तरह से तार-तार हो रहा है।
ज्ञात हो कि विपक्ष के 26 दलों का जब गठबंधन हुआ था तब कहा गया था कि वे सारे देश में भाजपा के खिलाफ मिलकर लड़ेंगे, लेकिन गठबंधन के सबसे बड़े दल कांग्रेस ने साफ कहा है कि ‘इंडिया अलायंस’ का गठन 2024 लोकसभा चुनावों के लिए हुआ है न कि विधानसभा चुनाव के लिए। कांग्रेस ने इसी रणनीति के तहत पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में अपने किसी सहयोगी दल को तवज्जो नहीं दी। मिजोरम को छोड़कर राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की भाजपा से सीधी लड़ाई है। वहीं, तेलंगाना में उसका मुकाबला के. चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति से है। मध्य प्रदेश में सीट बंटवारे को लेकर तो कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में शुरू हुआ तनाव कम बेहद ही खराब दौर में पहुंच गया है। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में सीटों का बंटवारा तो अंततः नहीं हो पाया, जबकि दोनों तरफ से ये दावा किया गया था कि भाजपा को हराने के लिए चुनावी तालमेल जरूरी था, पर ऐसा नहीं हुआ तो समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस पर धोखेबाजी का आरोप तक लगा दिया। इसी तरह यही बात कांग्रेस पार्टी के नेता समाजवादी पार्टी के लिए कह रहे हैं।
कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात पक्की न हो पाने के बाद मध्य प्रदेश में जहां अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के 45 उम्मीदवार चुनाव मैदान उतारे हैं वहीं और नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने भी तकरीबन दर्जन भर उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है।‌पहली सूची जारी कर चुके हैं। इसी तरह राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने भी बिना किसी गठबंधन के चुनाव मैदान में उतरा।
इस तरह इन विधानसभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच विपक्षी दलों में अभी से ही घमासान मचा हुआ नजर आ रहा है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के बाद समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर की पार्टी है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की स्थिति ज्यादा मजबूत है। ऐसे में राष्ट्रीय पार्टी समाजवादी पार्टी से किसी भी तरह का समझौता करने के मूड में नहीं दिखाई पड़ रहा है। मध्य प्रदेश में भाजपा के मुख्य मुकाबले में कांग्रेस था और इसलिए उसने समाजवादी पार्टी को सीटें देने से गुरेज किया था। इसे लेकर अखिलेश यादव ने आपत्ति भी जताई थी और सवाल किया था कि क्या यह अलायंस राज्य स्तर पर है या नहीं? तब कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी की स्थिति की याद दिलाते हुए उसे कांग्रेस को सहयोग देने की अपील की थी। ऐसे में माना जा रहा है कि यही तर्क उत्तर प्रदेश में सीट बंटवारे के दौरान समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव भी कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के मैदान में आमने-सामने तो भाजपा और कांग्रेस थीं, लेकिन निशाने पर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव आ रहे हैं और सूबे के सियासत की आंच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक पहुंच रही है। लंबे समय से समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी का जो रुख सामने आया है, उसका सीधा असर ‘इंडिया अलायंस’ पर पड़ना निश्चित है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में विपक्ष एकजुट नहीं हो पाता तो देश के बाकी हिस्सों में साथ होकर भी कोई फायदा नहीं होने वाला है।
कांग्रेस के लिए क्षेत्रीय दल कितने महत्वपूर्ण हैं, ये तो राहुल गांधी ने कांग्रेस के उदयपुर मंथन शिविर में ही  टिप्पणी करके जता दिया था। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने साफ तौर पर यही समझाने की कोशिश की थी कि क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करना ही होगा। राहुल गांधी की इस टिप्पणी पर कर्नाटक से लेकर बिहार में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई थी। अगर दिल्ली अर्थात प्रधानमंत्री पद का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता हुआ माना जाता है, तो ये भी मान कर चलना चाहिये कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया अलायंस’ के मामले में भी यही बात लागू होती है। ऐसे में समाजवादी पार्टी को हल्के में लेना कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के लिए बहुत भारी पड़ सकता है।
वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन का स्लोगन था उत्तर प्रदेश को ये साथ पसंद है। ये साथ राहुल गांधी और अखिलेश यादव का ही था। दोनों नेता तब साथ-साथ चुनावी रैलियां और रोड शो भी करते रहे। प्रियंका गांधी भी उत्तर प्रदेश के लड़कों के साथ को काफी उत्साह भरी नजर से देख रही थीं। माना जाता है कि तब प्रियंका गांधी वाड्रा ने ही कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन कराया था और ऐसा करने के लिए उनको डिंपल यादव की भी थोड़ी मदद लेनी पड़ी थी। फिर डिंपल यादव ने अखिलेश यादव को और प्रियंका गांधी ने राहुल गांधी को गठंबधन के लिए मना लिया था। कांग्रेस ने मोलभाव करके काफी सीटें ले लीं, लेकिन नतीजे आये तो बुरी तरह लुढ़क गई। अखिलेश यादव सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहे थे और उनको बड़ी उम्मीद थी कि उनकी साइकिल पर कांग्रेस का हाथ लग जाये तो वो आसानी से रफ्तार पकड़ लेगी। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। ऐसे में चुनाव बाद गठबंधन टूट गया। हालांकि गठबंधन टूट जाने के कई कारण माने जाते हैं, जिनमें एक कारण ये भी कहा जाता है कि राहुल गांधी, अखिलेश यादव को भाव नहीं दे रहे थे।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव ने मायावती के साथ गठबंधन किया और गठबंधन से कांग्रेस को पूरी तरह दूर रखा गया। बस रायबरेली और अमेठी सीट पर कांग्रेस को बख्श दिया गया, फिर भी राहुल गांधी की हार के साथ कांग्रेस को अमेठी सीट गंवानी पड़ी थी। इंडिया अलायंस में शामिल विपक्षी दलों की अब तक तीन बैठकें हो चुकी हैं। इन बैठकों में सिर्फ भाजपा के खिलाफ हुंकार भरने से ज्यादा प्रगति नहीं हो सकी। भाजपा इंडिया अलायंस के विपक्षी दलों के खिलाफ किसी तरह का मुद्दा हाथ से जाने नहीं दे रही है। मुद्दा चाहे भ्रष्टाचार का हो या फिर दूसरे क्षेत्रीय-राष्ट्रीय चुनावी महत्व का। विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों की सूरत साफ नजर आने लगी है। इस बिगड़ी हुई सूरत को संवार भाजपा को उसी हालत में चुनौती दी जा सकती है, जब क्षेत्रीय दल अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर एकता की कवायद करेंगे।