आया ईश्वर की दासी है स्वामी डा० निर्मलानंद

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Eksandesh Desk

रांची: महर्षि मेंही आसाम पुनिया में हर वर्ष की भौनि इस वर्ष भी रांची जिला संतमान समयसँग समिति के तत्वावधान में पितृ-पक्ष ध्यान साधना शिविर का आयोजन किया गया है जिसमें निभान प्रांतों से आये साधकगण पाँच घंटे का मागास एवं जीत समय के सरसँग में भाग 2. आध्यात्मिक उन्नति का प्रयास कर रहे हैं। आज शिविर के ग्यारहवें दिन अपने प्रवचन के क्रम में भाश्रम निर्मलानंदजी महाराज ने कहा कि माया का शाब्दिक अर्थ होता है- जिसका कोई वास्तविक उपस्तित्व नहीं होता है किन्तु सत्य, भासित होता है। वस्तुतः भामा ईश्वर की बासी है। भक्त का माया नहीं व्यापती है। संर सङ्गुरु महरांचे मैत्री परमहंसजी महाराज की बाणी है कि भक्त ध्यान-भजन से मामा के अभाव से बचा सकते हैं। आगे आपने कहा कि मध्या का वास्तविक रूप अज्ञानता है। यदि अज्ञानता मिट जाए और शान हो जाए तब भक्त माया मंडला से ऊपर उठ जायेंगे संतों के सँग से मीन व भज्ञानता मिटता है। मान-साधना शिविर में साधक अज्ञानता को मिटाने का मी प्रभास करते हैं। लेकर अपनी-

पूज्य लाभो इमामानंदजी ने कहा कि भान से मानसिक तनाव मिटता है और शांति प्राप्त होती है।

पूज्य स्वामी श्री बाल कृष्ण जो ने कहा कि जनसाधारण अन धन-सम्पति को ही माया कहते हैं। किन्तु यह तो मोटी माया है। अहंकार भी माया का ही रूप है। गुरु कृपा से मोह व अज्ञानता का नारा होता है। संतमत सत्संग के माध्यम से संदेश दिया जाता है कि ईश्वर का सुमिरण-भजन करने से

मनुष्य की सुख व शांति मिलेगी अतः हम मानव को भलि पथ पर गग्रसर होने का सतत् प्रयास करता चाहिए। राँचो नगर के सभी धर्म प्रेमी जनों से संतमत सत्संग समिति भाग्रत करती है कि इस चर्म पज्ञ एवं शान मा में अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर संत महात्माभों के दर्शन-प्रवचन से लाभ उठाने और मानव जीवन को सफल बनाने की सार्थक कोशिश करें।