Eksandesh Desk
लोहरदगा : शुक्रवार को लोहरदगा ग्राम स्वराज्य संस्थान के सभागार में भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत संस्थान के सचिव सीपी यादव द्वारा भगवान बिरसा मुंडा फोटो पर माल्यार्पण कर किया गया। पश्चात संस्थान के सभी सदस्यों द्वारा भगवान बिरसा मुंडा को पुष्पांजली अर्पित किया गया। तत्पश्चात संस्थान के सचिव सीपी यादव ने अपने संबोधन में भगवान बिरसा मुंडा के जीवन चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि बिरसा मुंडा जिन्हें धरती आबा के नाम से भी जाना जाता है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व रहे हैं। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलीहातू गाँव में मुंडा जनजातिय परिवार में हुआ था।
बिरसा मुंडा का जीवन कठिनाइयों और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है। उनका बचपन गरीबी और संघर्ष में बीता, लेकिन उन्होंने शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास जारी रखा। मिशनरी स्कूल में पढ़ाई के दौरान उन्होंने अंग्रेजों की नीतियों और मिशनरियों के आदिवासी संस्कृति पर किए जा रहे हमलों का विरोध करना शुरू किया। उन्होंने अपने समुदाय को एकजुट किया और उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को सुरक्षित रखने के लिए प्रेरित किया। बिरसा मुंडा ने आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए उलगुलान (महान विद्रोह) की शुरुआत की। यह विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ चलाया गया था। उन्होंने अंग्रेजों की जमीन हड़पने की नीतियों का विरोध किया और आदिवासियों को उनकी जमीन वापस दिलाने का संकल्प लिया। उनके नेतृत्व में आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ कई संघर्ष किए, उन्हें कड़ी चुनौती दी।
बिरसा मुंडा का धार्मिक दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण था। उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने एक नए धार्मिक आंदोलन की शुरुआत की, जिसे बिरसैत कहा जाता है। इस आंदोलन का उद्देश्य समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और सामाजिक बुराइयों को दूर करना था। बिरसा मुंडा का संघर्ष अंग्रेजों के लिए एक बड़ी चुनौती था। उनके नेतृत्व में आदिवासियों ने कई सफलताएँ हासिल कीं, लेकिन 1900 में उन्हें अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 9 जून 1900 को रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद भी उनका संघर्ष और उनके विचार जीवित रहे और समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बने।