विधानसभा में नई नियोजन नीति को लेकर घमासान, नौकरियों के लिए और कितना होगा इंतजार

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Ranchi: विधानसभा के बजट सत्र में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (CM Hemant Soren) के साथ-साथ महागठबंधन में शामिल सभी दलों को इन दिनों विपक्ष के हंगामेदार विरोध का सामना करना पड़ रहा है. राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नई नियोजन नीति (new planning policy) को लेकर विधानसभा सत्र के दौरान मुख्य विपक्षी दल भाजपा के तेवर नरम होते फिलहाल नहीं दिख रहे. “60-40 नाए चलतो” जैसे चर्चित नारों के साथ सत्र के दौरान बीते शनिवार को भाजपा के मुख्य सचेतक बिरंची नारायण के नेतृत्व में विपक्ष ने खूब हंगामा किया. विपक्ष ने इस दौरान मुख्यमंत्री से नई नियोजन नीति को लेकर सदन में जवाब देने की मांग की है. साथ ही विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि विपक्ष द्वारा विधानसभा से पारित विधेयक को कैबिनेट में आखिर कैसे संशोधित किया गया.

विधानसभा अध्यक्ष भी सत्र के दौरान सवालों से घिरे

विधानसभा में सर्वसम्मति से पास किए गए विधेयक को कैबेनेट में संशोधित किए जाने के विरोध के दौरान रांची विधायक सी.पी सिंह ने सबका ध्यान अपनी ओर खिंचा. विधायक सी.पी सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष से ही हंगामें के बीच सवाल पूछते हुए कहा कि ‘महोदय आखिर आपकी विवशता क्या है. आप मुख्यमंत्री से कैबिनेट में विधेयक संशोधन किए जाने के मामले में जवाब दिलाकर सदन की गतिरोध को समाप्त कर सकते हैं.’

आखिर कब बनेगी झारखंड की नियोजन नीति

झारखंड गठन के करीब 23 साल बाद भी अब तक की सभी राज्य सरकारें स्थानीय व नियोजन नीति को लेकर विवादों में रही हैं. बीते 23 सालों के दरम्यान राज्य ने कुल 11 मुख्यमंत्री देखे, पर महज तीन मुख्यमंत्रियों ने स्थानीय व नियोजन नीति बनाने को लेकर कदम उठाया, पर लगातार हाई कोर्ट से इन नीतियों के रद्द होने के बाद यह कदम अब सुद्ध राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है. हालांकि इन सबके बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने स्थानीय व नियोजन नीति को लेकर जनआकांक्षी कदम उठाए हैं, पर रामगढ़ उपचुनाव में हार व विधानसभा में विपक्ष के जोरदार विरोध के बीच अब वे विवादों में घिरते नजर आ रहे हैं.

हेमंत सोरेन के कार्यकाल में इतनी बार बदली नियोजन नीति

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने साल 2021 में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा बनाए गई नियोजन नीति को रद्द करते हुए, नई नियोजन नीति बनाई थी. इस नई नीति के तहत झारखंड से मैट्रिक व इंटर पास की अनिवार्यता के साथ-साथ हिंदी व अंग्रेजी को हटाकर प्रत्येक जिले में ऊर्दू व क्षेत्रीय भाषाओं को मान्यता देते हुए नई नियोजन नीति बनाई. नई नियोजन नीति कैबिनेट से पास होने के साथ ही राज्यभर में इसका विरोध होना शुरू हो गया. मामला हाई कोर्ट पहुंचा जहां कोर्ट ने फिर इस नियोजन नीति को रद्द कर दिया.

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