रांची : महर्षि मेंही आश्रम चुटिया में रांची सन्तमत सत्संग समिति के तत्वावधान में चल रहे दो दिवसीय ज्ञान यक्ष का समापन रविवार को हुआ । जिसमें संतमत के कई प्रकांड विद्वानों व साधु ,महात्माओं के दर्शन एवं प्रवचन से जिला के श्रद्वालु भक्तों ने लाभ उठाया। ईश्वर,संत एवं गुरू की स्तुति विनती के साथ कई धर्मगं्रथों का पाठ ,भजन गायन एवं अन्य सत्संग का आयोजन किया गय। प्रात:कालीन सतसंग में मनुष्य देह की उपादेमता व ईश्वर के स्वरूप विषय पर चर्चा की गयी। अपराहनकालीन में सोपानों का वर्णन किया गया । सिद्वपीठ महर्षि आश्रम ,कूष्णपाट,भागलपुर से आये संतमत के वर्तमान आचार्य पूज्यवाद महिर्षि हरिनंदन परमहंस महाराज प्रतिनिधि स्वरूप पूज्यवाद स्वामी प्रमोदानंद महाराज ने भक्तो का अपने प्रवचन के क्रम में कहा कि हमें बहुत भाग्य से मनुष्य का शरीर मिला है और हमें यह शरीर ईश्वर भक्ति करने के लिए मिला है। धर्म कथा बाहरी सत्संग और ध्यान आंतरिक सत्संग है । बाहय सत्संग से हमें आंतरिक्त अर्थात ध्यान करने की प्रेरणा मिला है । इस शरीर में नव प्राणों के अतिरिक्त एक दसवां द्वार है जिसे तीसरा तिल ,सुषुभ्ना ,त्रिनेत्र,आज्ञाचक्र आदि नामों से अभिहित किया जाता है। यही से आंतरिक भक्ति की श्ुरूआत व संतमत में सद्गुरू सदयक्ति लेकर भक्ति का प्रारंभ की शुरूआत होती है। जब मानस ध्यान दृष्टिसाधन और शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है । संतमत के अंतराष्ट्ीय प्रवक्ता पू स्वामी विवेकानंद ,पूज्य स्वामी सत्यप्रकाश,पूज्यस्वामी उॉ निर्मलानंद ,पू स्वामी परमानंद ,पू स्वामी जय कुमार आदि महात्माओं ने भी अपने विचारो से सबो को कराया