गांधी जी द्वारा 13 अप्रैल 1917 में चंपारण में खोली गई प्रथम पाठशाला, प्रथम छात्र स्वतंत्रता सेनानी कमला प्रसाद श्रीवास्तव

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अशोक वर्मा

मोतिहारी : चंपारण में आजादी की लड़ाई 1857 के पहले आरंभ हो गई थी।1857 मे देश में हुए सिपाही विद्रोह का प्रभाव चंपारण में भी पड़ा था। सुगौली में सिपाहियो ने विद्रोह कई अंग्रेज अफसरो की हत्या कर दी थी। उस घटना के बाद जिले में अंग्रेजों का दमन तेज हो गया जिससे कुछ दिनों के लिए आंदोलन दब गया।
1917 में जब महात्मा गांधी चंपारण आए और चंपारण सत्याग्रह का सफल नेतृत्व किया तब पूरे देश मे चल रहे आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानियों को नई शक्ति मिली थी। चंपारण सत्याग्रह के सफल होने के कारण ही अंग्रेजों का दमन कुछ कम हुआ। गांधी के चंपारण आगमन के बाद चंपारण में आंदोलन उग्र हुआ। काफी नौजवान आंदोलन में कूद पड़े। बडहरवा लखनसेन के नवयुवक कमला प्रसाद श्रीवास्तव ने आजादी की लड़ाई में अपना जीवन समर्पित कर दिया।चंपारण सत्याग्रह के दौरान 13 नवंबर 1917 में गांधीजी ने बडहरवा लखनसेन गांव में जिले मे प्रथम पाठशाला खोली थी। पाठशाला में नामांकन करने वाले प्रथम छात्र कमला प्रसाद श्रीवास्तव आगे चलकर स्वतंत्रता की लड़ाई में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे।
कमला प्रसाद श्रीवास्तव का जन्म 19 जनवरी 1908 में बरहरवा लखनसेन गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम स्वर्गीय लक्ष्मण प्रसाद था।गांधी जी द्वारा बडहरवा लखनसेन गांव में खोली गई प्रथम पाठशाला में प्रथम विद्यार्थी के रूप में कमला प्रसाद श्रीवास्तव का नामांकन हुआ था।उस समय अंग्रेजों का इतना खौफ था कि जल्द कोई स्कूल में नाम लिखाना नहीं चाहता था लेकिन उस भय को कमला प्रसाद श्रीवास्तव ने तोड़ दिया, उनके नामांकन के बाद काफी विद्यार्थियों ने वहां नामांकन कराया। चंपारण सत्याग्रह के बाद महात्मा गांधी चंपारण से वापस लौट गए लेकिन चंपारण में उन्होंने बहुत कुछ किया।शिक्षा नीति बनाई, स्कूल और चिकित्सालय खोलें, बाहर से डॉक्टर को बुलाकर बैठाया ।
गांधी जी के चंपारण आने से जिले के आंदोलनकारियो में नई शक्ति और जोश का संचार हुआ।मेहसी से लेकर बगहा तक काफी नौजवान अंग्रेजों से लोहा लेने लगे।
आंदोलन के दौरान 1930, 1932 तथा 1942 में कमला प्रसाद श्रीवास्तव गिरफ्तार किए गए और उन्हें कुल11 माह सश्रम कारावास की सजा हुई।जेल से छूटने के बाद भी वे जरा भी नहीं डरे बल्कि और ज्यादा शक्ति और जोश के साथ अंग्रेजों का विरोध करने लगे ।सरकारी कार्यालयो पर तिरंगा लहराना,नमक कानून तोड़ना ,जुलूस निकलना आदि आंदोलन का मुख्य एजेंडा था। कमला बाबू जीवन भर खादी का वस्त्र ही धारण किये। वे अपने जीवन के आखिरी सांस तक कांग्रेस पार्टी से ही जुड़े रहे। लगभग 1000 वर्ष की गुलामी के बाद जब देश आजाद हुआ तो देश के सामने अनेक चुनौतियां थी। कमला बाबू ने नए भारत के निर्माण में अपना पूर्ण योगदान दिया । कांग्रेस पार्टी में रहते हुए उन्होंने हरेक भारतीयों को गुणवान एवं चरित्रवान बनाने के कार्य में जुटे रहे। कांग्रेस सेवादल को भी उन्होंने नई शक्ति दी और कांग्रेस के सेवा संस्कृति के मूल सिद्धांत को उन्होंने लागू कर दबे कुचले पिछड़ी और गरीब लोगों के दुख दर्द को दूर करने का प्रयास किया। लोगों आम भारतीयों में राष्ट्र प्रेम घर परिवार समाज एवं राष्ट्रपति दायित्व को स्थापित करने में अपनी शक्ति को लगा दी ।कमला बाबू ने आजाद भारत के जिस स्वरुप की परिकल्पना की थी वैसा राष्ट्र बनाने में वे जीवन भर लग रहे।1989 मे उनकी मृत्यु हुई ।
वर्तमान समय उनके चतुर्थ एवं पंचम पुत्र क्रमशः देवव्रत श्रीवास्तव एवं अजय कुमार श्रीवास्तव मोतिहारी सिविल कोर्ट में बतौर अधिवक्ता अपनी सेवा देते हुए अपने पिता के परिकल्पना को साकार मूर्त स्वरूप देने के लिए हमेशा प्रयासरत है।

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