sunil Verma
रांची : गो कृषि आधारित प्राकृतिक खेती से प्राप्त कृषि उत्पाद न केवल हानिकारक रसायनों के दुष्प्रभावों से मुक्त होते हैं बल्कि उनमें पोषक तत्वों की मात्रा भी अधिक होती है। अनाज, फल एवं सब्जी में प्रोटीन, विटामिन आयरन, मिनरल आदि की उपलब्धता बढ़ाने के लिए प्राकृतिक खेती ही एकमात्र रास्ता है। ऐसे उत्पादों के सेवन से ही शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी। उपरोक्त विचार बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के बिजिनेस प्लानिंग एण्ड डेवलपमेंट सोसाइटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एवं अमृत कृषि विशेषज्ञ श्री सिद्धार्थ जायसवाल ने सुकुरहुटू गोशाला, कांके में प्राकृतिक खेती पर व्याख्यान देते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से कृषि उत्पादों में पोषक तत्वों की उपलब्धता लगातार घट रही है और कैंसर जैसी बीमारी फैल रही है। गोबर का इस्तेमाल कास्ट बनाने के बजाय खेतों में करना चाहिए। देशी गाय के गोमूत्र में 500 प्रकार के माइक्रोब्स हैं जो मिट्टी का स्वास्थ्य संवर्धन करते हैं। खेती में देशी बीज, अमृत जल और अमृत मिट्टी के इस्तेमाल से पोषक तत्वों की उपलब्धता में पर्याप्त वृद्धि होती है। अमृत मिट्टी तैयार करने में लगभग 5 महीने का समय लगता है किंतु उसके बाद इस मिट्टी में 15 वर्षों तक किसी खाद या कीटनाशक की आवश्यकता नहीं पड़ती और बिना जुताई के खेती होती है। पहली फसल से ही उत्पादकता में वृद्धि होती है तथा उत्पादों का सेल्फ लाइफ भी अधिक होता है। गोवंश की देसी नस्लों के संरक्षण और प्रसार पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पशु आनुवंशिकी संसाधन ब्यूरो, करनाल, हरियाणा द्वारा अब तक 50 से अधिक गोवंश नस्लों को चिन्हित कर उनका गुण निर्धारण किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि जर्सी और होल्सटीन फ्रिसियन नस्ल की गाय एक जीव मात्र है, सच्चे अर्थों में गाय नहीं है।
आरंभ में रांची गोशाला प्रबन्धन समिति के अध्यक्ष पुनीत कुमार पोद्दार ने स्वागत भाषण करते हुए कहा कि सुकुरहुटू और हुटूप गोशाला में गो आधारित प्राकृतिक कृषि का विस्तृत मॉडल स्थापित किया जाएगा। प्रबंधन समिति परिसर में पंचगव्य चिकित्सा केंद्र स्थापित करने की संभावना पर भी विचार करेगी।