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रांची: हूल दिवस के अवसर पर अबुआ अधिकार मंच के सदस्यों ने मोरहाबादी स्थित सिद्धू-कान्हू पार्क में क्रांति के महानायकों सिद्धू और कान्हू मुर्मू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किए। अबुआ अधिकार मंच के कार्यकर्ता अभिषेक शुक्ला और अभिषेक झा के नेतृत्व में आयोजित किया गया। इस अवसर पर अभिषेक शुक्ला ने कहा हूल क्रांति न केवल आदिवासी अस्मिता और स्वाभिमान की प्रतीक थी, बल्कि यह एशिया के सबसे बड़े जन आंदोलनों में से एक थी। यह बिना हथियारों के एक सशक्त विद्रोह था। जिसने अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की। सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो और झानो का बलिदान हमें सिखाता है कि जब अन्याय व्यवस्था का हिस्सा बन जाए, तो प्रतिरोध और क्रांति भी कर्तव्य बन जाती है। अभिषेक झा ने कहा हूल दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि यह आदिवासी समाज के आत्मगौरव, सामूहिक संघर्ष और स्वतंत्रता की चेतना का प्रतीक है। सिद्धू-कान्हू के नेतृत्व में 1855 में शुरू हुआ यह विद्रोह, ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला देने वाला जन आंदोलन था, जो बाद में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा बना। 30 जून 1855 को सिद्धू और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में संथाल जनजाति ने ब्रिटिश सरकार और जमींदारी प्रथा के खिलाफ हथियार उठाए। भले ही उनके पास आधुनिक हथियार न थे, लेकिन उनके इरादे दृढ़ और उद्देश्य स्पष्ट था झ्र ह्यअबुआ दिसुम, अबुआ राज । यह विद्रोह जल्द ही झारखंड, बिहार और बंगाल के कई क्षेत्रों में फैल गया और ब्रिटिश हुकूमत की नींव को चुनौती देने लगा। इस अवसर पर मुख्य रूप से अभिषेक झा, अभिषेक शुक्ला, विक्रम कुमार यादव, विशाल कुमार यादव, राहुल कुमार, सुदीप मिंज, अमित तिर्की, दिवाकर प्रजापति, अर्जुन महतो, निखिल कुमार, मनस्वी, अंजना लिंडा, जयसवाल, अमित, अनमोल, मुद्दासिर, रित्विक, रिशु, गोल्डन, सैलेश इक्का, कृष्णा लोहरा, अनुज मुंडा, अजीत उरांव, निरंजन उरांव, आदर्श, अनुज, आदित्य, प्रभातमहतो, साहिल, अमित सहित सैकड़ों की संख्या में मंच के सदस्य उपस्थित रहे।
