के. विक्रम राव
अंतत: सिंगूर के जनांदोलन का रिजल्ट एक दशक बाद कल (30 अक्टूबर 2023) आ ही गया। हिसाब लगाया जा रहा है कि कौन जीता? कौन हारा? और लुटा तो वह भी कौन? टाटा मोटर्स के रतन टाटा को पौने आठ अरब रुपयों की मुआवजा राशि मिलेगी। वकीलों की फौज को तो जिला से शीर्ष अदालत तक काफी आय हो गई। मगर इन सब में बड़ी लाभार्थी रहीं कुमारी सुश्री ममता बनर्जी। चालीस सालों से सत्ता से चिपकी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को अपदस्थ कर दिया। ज्योति बसु से राज चला था बुद्धदेव भट्टाचार्या तक। सारे कम्युनिस्ट अतीत के गर्त में समा गए। मगर रतन टाटा और ममता बनर्जी की तुलना में सिंगूर के मेहनतकश खेतिहर मजदूर को कुछ न मिला। उसे केवल छीनी गई जमीन मिल गई। पर अब उसकी उर्वरक शक्ति घट गई। सिरमिंट, बालू, निर्माण सामग्री पड़ने से खेत बंजर हो गए। मोटर कंपनी की योजना से आस जगी थी कि जमीन के दाम ऊंचे मिलेंगे। उम्मीद का आधार भी था। सिंगूर क्षेत्र कभी फ्रांसीसी उपनिवेश में था, नाम चंद्रनगर रहा। हुगली नदी के निकट। हरियाली थी, उम्दा खेती की संभावनाएं भी।
अब करदाता से वसूली की गई राशि से काटकर टाटा को मुआवजा की रकम देने पर लोहियावादी विचारक साथी उमेश प्रसाद सिंह का सुझाया उपाय भला, नीक और तार्किक है : नैनो कार के मामले में 766 करोड़ रुपए के नुकसान का मामला ममता बनर्जी के निजी सम्पति से वसूलने की कार्रवाई होनी चाहिये?
बंगाल की खाड़ी के इस झगड़े से अरब सागर पर स्थित गुजरात को लाभ मिला। जब रतन टाटा ने थक कर, खीझकर तय किया (7 अक्टूबर 2008) कि अहमदाबाद जिले के साणंद में यह छोटे मोटर कार का कारखाना लगाएंगे। तब एक घटना हुई थी। सिंगूर में मारकाट से टाटा भी तब तक तंग आ चुके थे। सोच रहे थे कि विकल्प क्या होगा? तभी गुजरात के भाजपाई मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने सिर्फ एक लाइन लिखी रतन टाटा को। एक ही शब्द लिखा, बल्कि केवल छह अक्षर : ‘सुस्वागतम’, अर्थात गुजरात में पधारिए। टाटा मान गए। साणंद में इकाई लगा दी। करीब 1100 एकड़ में (2010 में) प्लांट लगा। नाम रखा टाटा नानो। गुजराती में नानो का शाब्दिक अर्थ ही है : ननकऊ (लघु)। नया मोड आ गया भारत के वित्तीय इतिहास में। करीब ग्यारह सौ एकड़ जमीन साणंद तालुका के खोड़ा गांव में टाटा ने संयंत्र लगाया। मोदी सरकार ने तब एक एकड़ (केवल 900 रुपए वर्गमीटर) के दाम पर दी। नवीनतम कार विनिर्माण सुविधा भी है और टाटा टैगो और टाटा टेगोर जैसी लोकप्रिय हैचबैक बनाती है। संयंत्र 2018 में 100 फीसदी क्षमता उपयोग तक पहुंच गया। टाटा मोटर्स ने 2020 में साणंद संयंत्र में निर्मित 300,000वां टियागो तैयार किया।
इस संयंत्र ने गुजरात राज्य में ऑटोमोबाइल उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टाटा मोटर्स द्वारा साणंद में निवेश करने के बाद, गुजरात में कई ऑटोमोबाइल विनिर्माण संयंत्र खुल गए हैं : सुजुकी मोटर गुजरात, फोर्ड इंडिया, एमजी मोटर इंडिया, हीरो मोटोकॉर्प, होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया, आदि। टाटा इलेक्ट्रिक मोबिलिटी फोर्ड मोटर्स से साणंद में दूसरा प्लांट हासिल करने की योजना बना रही है क्योंकि मौजूदा साणंद प्लांट पूरी क्षमता तक पहुंच गया है।
अब शस्यश्यामला सिंगूर के किसान यदि बालुई साणंद के नवसृजित उत्कर्ष को ललचायी दृष्टि से देखें तो? दोष केवल ममता बनर्जी की अतीवी गफलत को जाता है।
भूमि अधिग्रहण के विरोध में किसानों के आंदोलन के चलते टाटा द्वारा ‘नैनो’ कार संयंत्र पश्चिम बंगाल से बाहर जाने के कई दशक बाद सिंगूर के किसान अब ठगे हुए महसूस कर रहे हैं। उन्हें लौटाए गए भूखंड कृषि योग्य नहीं हैं। कस्बे में उनके लिए पर्याप्त नौकरियां भी नहीं है। इलाके में उद्योग लगाने की मांग के साथ पिछले साल कोलकाता मार्च करने वाले किसानों ने कहा कि राजनीतिक दलों के नेताओं ने उनका ‘इस्तेमाल किया’। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उनकी जमीनें वापस तो मिली। हालांकि, यह (जमीन) या तो कंक्रीट में तब्दील हो गई हैं या मलबे से ढंकी हुई है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक जमीन पर कंक्रीट के खंभों और सीमेंट के स्लैब की मौजूदगी के चलते जमीन को कृषि योग्य बनाने के लिए कम से कम सात से आठ इंच मोटी ऊपरी परत को हटाना होगा। यह बहुत खचीर्ली प्रक्रिया है। किसान इसकी लागत वहन नहीं कर सकते। किसानों ने कहा कि ऐसा नहीं किए जाने पर जमीन को कृषि योग्य बनाने के लिए कम से कम दस साल लगेंगे। हुगली से बीजेपी की पुरोधा लॉकेट चटर्जी ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस ने राजनीतिक फायदे के लिए किसानों का शोषण किया।
मसलन लखनऊ क्या था? सिवाय स्कूटर्स इंडिया और एच. एल. ए. के ? रोजगार के हिसाब से विश्वविद्यालय के स्नातकों को बस कन्डक्टर, छोटे बाबू अथवा चपरासी की नौकरी ही थी। वर्तमान परिदृश्य में प्रगतिवादी बदलाव आ रहा है। साणंद इतिहास के कैलेंडर के कुछ पन्ने पलट कर फिर नया दौर लाएगा। सिंगूर भी पिछड़े बंगाल में नवविकास का संदेश दे सकता था। पर ममता बनर्जी को माकपा को उखाड़ फेंकने की जल्दी थी। सत्ता हथियाने की। नतीजन टाटा को अरबों का फायदा हुआ। निर्धन खेतिहर को ठेंगा मिला ?
अब ध्यान दें कृषि तथा उद्योग के पहलुओं पर। नीतिगत तौर पर नयी अर्थनीति के तहत अंचलों में भी छोटे-मध्यम उद्योगों की साथ चुनिंदा इलाकों में बड़े उद्योग की योजना बननी चाहिए। अमूल एक छोटा सा गांव था बड़ोदरा के निकट, खेड़ा में। आज वह एशिया का विशाल दूध उत्पादन केंद्र बन गया है। ठीक है ऐसी ही परिकल्पना है अब साणंद की भविष्य में। यह भी एक महान औद्योगिक केंद्र बन कर रहेगा। वहां की जनता भी यह मानती है। प्रमुदित है। नजरिया आम जन के विकासवाला है। समझी ममता जी !