मोदी सरकार का समलैंगिक विवाह पर बड़ा बयान, कहा- इससे समाज में फैलेगी अव्यवस्था

Ek Sandesh Live

केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में कड़ा विरोध किया है. सरकार ने अपने हलफनामें में कहा है कि स्त्री और पुरुष के बीच विवाह समाज के अस्तित्व और निरंतरता दोनों के लिए मूलभूत सिद्धांत है. समलैंगिक विवाह समाज के अस्तित्व और निरंतरता दोनों के लिए मूलभूत सिद्धांत है. समलैंगिक विवाह आदर्श नहीं हो सकता है. ये भारतीय परंपरा के विरुद्ध है. संसद के द्वारा देश में विवाह संबंधी कानून पूर्व में ही बनाए हुए हैं. सभी धर्म के परंपरा के अनुसार हमारे देश में अलग- अलग कानून बनाए गए हैं. इस नाजुक संतुलन से समाज में अव्यवस्था फैलेगी.

परिवार की अवधारणा पतिपत्नी और उनके संतान

भारत सरकार ने कहा है कि देश में परिवार की अवधारणा पति-पत्नी और उनके संतान हैं. इस नए कानून को मान्यता मिलने से दहेज हत्या जैसे तमाम कानूनी प्रावधानों को अमल में लाना कठिन होगा. इन पुराने कानून में महिला को पत्नी और पुरुष को पति मानकर बनाया गया है. सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को इस मामले में डी.वाई. चन्द्रचूड की बेंच में सुनवाई होनी है.

समलैंगिक विवाह मौलिक हक भी नहीं

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाली आईपीसी की धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया था. दो वयस्क आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध बना सकते हैं, तो फिर उन्हें कानूनी रूप से शादी की मंजूरी भी प्रदान की जाए. याचिका का जवाब यह दिया गया कि समलैंगिक संबंध और विवाह दोनों अलग-अलग बातें हैं. सरकार के तरफ से कहा गया था कि समलैंगिक वयस्कों को आपसी सहमति से शारीरिक संबंध को अपराध ना मानना और उनकी शादी को कानूनी दर्जा देना अलग बातें हैं. धारा 377 के आधार पर समलैंगिक शादी का दावा नहीं हो सकता है. इस विवाह को अपने मौलिक अधिकारों की तरह बताना या दावा करना गलत है.

किन-किन देशों में समलैंगिक विवाह को मिली है वैध्यता

ताइवान जो की एक मात्र एशियाई देश है जिसको इस विवाह के लिए कानूनी दर्जा मिला हुआ है. बता दें कि 1989 में सबसे पहले डेनमार्क में इस विवाह की अनुमति मिली थी.  अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, फ्रांस समेत 32 देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा मिला हुआ है.

क्या है धारा 377

आईपीसी की धारा 377 के अनुसार स्वेच्छा से किसी भी नाबालिग, महिला, पुरुष या जानवर के साथ प्रकृति के खिलाफ बिना सहमति के संबंध बनाया है, उसे आजीवन कारावास, के साथ दंडित किया जाएगा जो की दस वर्षौं के लिए बढ़ सकता है और साथ में जुर्माना भी लग सकता है.

2018 में कोर्ट ने दिया था फैसला

6 सितंबर को कोर्ट ने एतिहासिक फैसला दिया था. इस फैसले के बाद पुरानी सामाजिक बेड़ीयों को झटका लगा था, जबकि दूसरे वर्ग में प्यार करने की आजादी मिल गई थी. अंग्रेजों के समय से चले आ रहे भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के उस प्रावधान को भी हटा दिया गया. हालांकि, भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के 70 साल के बाद इस धारा से आजादी मिली है.

रिपोर्ट : रंजना कुमारी, रांची   

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