31 और 1 फ़रवरी को होगा आयोजन
Ranjeet Kumar
रांची: भारत के इतिहास में आदिवासी समुदाय का इतिहास बेहद ही गौरवपूर्ण रहा है, और इसमें भी बात जब हम सब जतरा का करते हैं तो आदिवासी समाज में जतरा का गौरवशाली इतिहास रहा है। जल, जंगल, ज़मीन, ढोल, नगाड़ा, अखाड़ा, नृत्य संगीत, पारंपरिक लोक गीत नृत्य, व्यंजन, जनजातीय शिल्, व्यापार, पहनावा वोढावा, खान-पान, रहन-सहन ही आदिवासी समुदाय की पहचान है. झारखंड में बत्तीस प्रकार के आदिवासी समुदाय निवास करता है. और भारत देश की बात करें तो 785 प्रकार के आदिवासी समुदाय निवास करती है. अपनी पहचान संस्कृति भाषा पारंपरिक लोक नृत्य संगीत, समाज को जागरूक करने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जतरा को पहचान मिले इसी उद्देश्य के साथ राजधानी राँची के धूमकुड़िया भवन में आदिवासी सामाजिक अगुवा अंतू तिर्की के अध्यक्षता में एक बैठक की गई.
बैठक में श्री तिर्की ने कहा कि झारखंड में 32 प्रकार के आदिवासी समुदाय निवास करती है वहीं पूरे भारत में 785 प्रकार के आदिवासी समुदाय निवास करती है. भारत की आज़ादी के बाद की बात या फिर झारखंड अलग राज्य होने के तईस वर्ष बाद भी कई ऐसे आदिवासी समुदाय है जो आज भी अपने सांस्कृतिक धार्मिक पूजा पाठ, नृत्य संगीत, व्यंजन के बारे में नहीं जानते है. ऐसे लोगों को जागरूक कर उन्हें एक सूत्र में बांधना समाज के मुख्य धारा से जोड़ना और अपने कला संस्कृति, भाषा कल्चर इत्यादि के बारे में बताना है और अपने जतरा को विश्व स्तर पर पहचान दिलाना है. उक्त मौक़े पर उपस्थित सूरज टोप्पो ने कहा की आदिवासी समुदाय का जल जंगल ज़मीन, भाषा संस्कृति इत्यादि का जिस तरह से लूट मची हुई है. वह समाज के लिए बेहद ही चिंताजनक है. ऐसे में राष्ट्रीय जतरा महोत्सव देश के तेरह करोड़ के लिए मिल का पत्थर साबित होगा.