Ashutosh Jha
काठमांडू : नेपाल की स्वास्थ्य प्रणाली कितनी अव्यवस्थित और गैर-जिम्मेदार है, इसका ताजा उदाहरण एक ही मरीज की ब्लड रिपोर्ट में आई भारी असमानता से साफ हो गया है। त्रिभुवन यूनिवर्सिटी टीचिंग हॉस्पिटल (TUTH), सिविल सर्विस हॉस्पिटल और शांता ग्लोबल पैथोलॉजी में कराए गए रक्त परीक्षण में मरीज राजेश कुमार पराजुली के प्लेटलेट काउंट में भारी अंतर पाया गया- TUTH में 52,000, सिविल अस्पताल में 103,000 और शांता ग्लोबल पैथोलॉजी में 120,000।
कौन सी रिपोर्ट सही? : जीवन-मरण तय करने वाले इस तरह के मेडिकल टेस्ट में इतना बड़ा अंतर न सिर्फ गंभीर लापरवाही है, बल्कि मरीज की जान को खतरे में डालने वाला अपराध भी है। मरीज किस रिपोर्ट को सही माने? क्या नेपाल की स्वास्थ्य परीक्षण प्रणाली भरोसेमंद है?
मरीजों की जान से खिलवाड़ : क्या नेपाल की पैथोलॉजी लैब्स मरीजों की सही जांच के लिए काम कर रही हैं, या फिर महज व्यवसायिक फायदे के लिए गलत रिपोर्ट दे रही हैं? यदि मेडिकल उपकरणों में गड़बड़ी है, तो इसकी निगरानी करने वाले विभाग क्या कर रहे हैं?
स्वास्थ्य मंत्रालय की चुप्पी : जब तीन अलग-अलग अस्पतालों की रिपोर्ट में इतना बड़ा अंतर है, तब स्वास्थ्य मंत्रालय चुप क्यों है? अगर गलत रिपोर्ट के आधार पर किसी मरीज का इलाज किया गया और उसकी जान चली गई तो जिम्मेदार कौन होगा?
नागरिक खुद हों जागरूक : अब नागरिकों को खुद जागरूक होना होगा। ऐसी लापरवाहियों के खिलाफ आवाज उठानी होगी, रिपोर्ट्स को क्रॉस-चेक करना होगा और सरकार पर दबाव बनाना होगा कि वह स्वास्थ्य प्रणाली को जवाबदेह बनाए। सरकार अब भी चुप रहेगी या नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कदम उठाएगी।