क्रांति कुमार पाठक
लोकतंत्र की एक बड़ी खूबी है कि उसमें बहुत रोमांच छिपा होता है। पक्ष हो या विपक्ष, जनमानस किसी को भी आश्वस्त नहीं होने देता है। जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, उनमें से किसी में भी न भाजपा पूरी तरह आश्वस्त थी और न कांग्रेस को जीत का पूरा विश्वास था। अब नतीजे आ गए हैं, जिसने एकबार फिर साबित कर दिया कि भाजपा अब भी देश की राजनीति की सबसे ताकतवर धुरी बनी हुई है। ऐसे समय में जब इस पार्टी के राज्यों में प्रदर्शन पर सवाल उठे रहे थे, उसने मध्य प्रदेश में डेढ़ दशक की सत्ता विरोधी लहर को दरकिनार करते हुए हाल की सबसे बड़ी जीत हासिल की है। वहीं, राजस्थान में हर पांच साल में राज बदलने का रिवाज भी कायम रखने में वह कामयाब रही है। भाजपा ने तमाम अनुमानों को दरकिनार करते हुए छत्तीसगढ़ में भी शानदार वापसी की है। इन तीनों राज्यों में भाजपा का कांग्रेस से सीधा मुकाबला था। हालांकि, तेलंगाना में मिली जीत कांग्रेस को सांत्वना देने में जरूर सफल रही, जहां इस पार्टी ने सत्ताधारी भारत राष्ट्र समिति के मजबूत किले को ध्वस्त किया है।
मध्यप्रदेश और राजस्थान, दोनों ही देश के बड़े राज्य हैं और दोनों का ही भारतीय राजनीति में गहरा महत्व है। इन दोनों राज्यों के नतीजों से कांग्रेस पहले की तुलना में और कमजोर होगी, जबकि भारतीय जनता पार्टी का मनोबल लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बहुत बढ़ जाएगा। केंद्रीय स्तर पर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर एक मजबूत विपक्ष की तलाश हो रही थी, पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की हार से कांग्रेस की स्थिति विपक्षी गठबंधन में कमजोर होगी। विशेष रूप से कर्नाटक जीतने के बाद कांग्रेस को जो आत्मविश्वास हासिल हुआ था, वह उसने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हार कर गंवा दिया है।
दूसरी तरफ, कर्नाटक लुटाकर भाजपा ने जो मनोबल गंवाया था, वह उसके पास और ज्यादा मजबूती से लौट आया है। खासतौर पर मध्य प्रदेश में भाजपा की तगड़ी जीत राजनीतिक विश्लेषण का महत्वपूर्ण विषय है। मोटे तौर पर भाजपा लगभग दो दशक से मध्य प्रदेश की सत्ता में है और इस विधानसभा चुनाव में जितनी मजबूत वह दिखी है, उससे राजनीतिक पंडितों को निश्चित ही आश्चर्य हुआ होगा। अब मध्य प्रदेश में कांग्रेस यदि स्वयं को पुनर्नवा करने के लिए संगठन के स्तर पर आमूलचूल परिवर्तन करे तो ही आगे के लिए कोई रास्ता तैयार होगा।हम कह सकते हैं, अब सियासी स्वरूप में मध्यप्रदेश भाजपा के लिए दूसरे गुजरात की तरह हो गया है।
भाजपा की इतनी बड़ी जीत ने फिर साबित किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा किसी भी सूरत में सियासी बाजी पलट सकती है। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भाजपा ने आधिकारिक तौर पर नरेंद्र मोदी के नाम पर दांव खेला और उसे बड़ी कामयाबी मिली। अब जबकि आम चुनाव की तैयारी 100 दिनों के अंदर शुरू हो जाएगी, नरेन्द्र मोदी के नाम पर मिली बड़ी कामयाबी भाजपा को अभी से ड्राइवर सीट पर तो विपक्ष को पूरी तरह बैकफुट पर धकेल रही है। तेलंगाना में भी भाजपा ने पिछले चुनाव के मुकाबले अपना विस्तार करने में सफलता पाई है। दस वर्षों के बाद भी ब्रैंड मोदी लगातार मजबूत होता जा रहा है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश चुनाव परिणाम के बाद जो सवाल उठे थे, उन्हें भी पांच राज्यों के इन नतीजों ने खारिज कर दिया है।
भाजपा के कमंडल के मुकाबले मंडल 3.0 लाने की कोशिश पूरी तरह विफल दिखी। कांग्रेस ने इन चुनावों के बीच जाति जनगणना को बहुत जोरदार तरीके से उछाला। इन राज्यों में इसे अपने घोषणापत्र में शामिल किया। लेकिन अंतिम परिणाम ने साबित किया कि यह मुद्दा बैकफायर कर गया है। नतीजा निकला कि जहां ओबीसी या ट्राइबल वोट कांग्रेस को पिछले चुनाव से भी कम मिले, वहीं सवर्ण वोट भी कांग्रेस से फिसले हैं। खासकर मध्य प्रदेश की लगभग 60 ओबीसी बहुल सीटों पर तो भाजपा ने 40 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल कांग्रेस के सबसे बड़े OBC चेहरे थे, लेकिन यह पार्टी वहां पिछड़ों की 30 सीटें हार गई और 21 आदिवासी बहुल सीटें कांग्रेस से छिन गईं।
इस चुनाव से निकला सबसे बड़ा संदेश यह भी है कि अब महिला आधारित कल्याणकारी योजनाएं सियासी सफलता के लिए सबसे बड़ा फैक्टर बन गई हैं। मध्य प्रदेश में लाड़ली योजना हो या छत्तीसगढ़ में भाजपा का इसी तर्ज पर वादा, यह वोटरों को आकर्षित करने में सफल रहा। पिछले दिनों कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में भी कल्याणकारी योजनाओं के वादे ने वोटर को आकर्षित किया। इसमें महिलाएं फोकस रहीं और इनके वोट ने पूरे चुनाव परिणाम को पलट दिया। इसका असर होगा कि अब आने वाले समय में इन्हें लुभाने के लिए एक के बाद एक, कई ऐसी योजनाएं देखने को मिल सकती हैं। हालांकि इसका दूसरा पहलू यह भी रहा कि तेलंगाना और राजस्थान में यह दांव नहीं चला।
इस चुनाव का सबसे बड़ा संदेश यह भी है कि कांग्रेस भले हिंदीभाषी क्षेत्र में अपनी स्थिति सुधारने में विफल साबित हुई है, लेकिन दक्षिण भारत में पार्टी के अच्छे दिन जारी हैं। कर्नाटक के बाद तेलंगाना में मिली कांग्रेस की जीत न सिर्फ हैरान करने वाली रही, बल्कि दक्षिण की राजनीति में यह बड़ा पड़ाव माना जा रहा है। देश के इस युवा राज्य तेलंगाना में पहली बार कांग्रेस की सरकार बनी है। हालांकि भाजपा ने भी तेलंगाना में पिछली बार के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करने का दावा किया है। वहां अभी की विधानसभा में भाजपा की तीन सीटें थीं, जिसे बढ़ाकर भाजपा ने 10 कर दिया है। साथ ही, उसका का वोट प्रतिशत बढ़कर 14% के करीब पहुंच गया है। लेकिन कांग्रेस के लिए दक्षिण में जीत पार्टी को मजबूती देगी।
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम का एक बेहद अहम संदेश यह भी है कि अब कई जगहों पर नए नेतृत्व के लिए रास्ता भी खुल गया है। मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर नेताओं को अब शायद ही दूसरा मौका मिले। वहीं राजस्थान में भी अशोक गहलोत का यह अंतिम चुनाव हो सकता है। भाजपा ने भी चुनाव से पहले संकेत दिया था कि अगर वह चुनाव जीतती है तो नए नेतृत्व को सामने उतार सकती है। मध्यप्रदेश में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नाम चर्चा में हैं। तो राजस्थान में वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत, बालकनाथ और मेघवाल जैसे नाम चर्चा में हैं।
इन पांच राज्यों के चुनाव परिणामों को अगर समग्रता में देखा जाए, तो ऐसा बहुत कुछ है, जिससे सीखकर आगे बढ़ना चाहिए। खासकर बढ़-चढ़कर दावा करने वाले कुछ नेताओं को सबक लेना चाहिए। तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति के अध्यक्ष व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव को अगर मिसाल के रूप में सामने रखें, तो पता चलेगा कि जमीन से उठकर ऊपर आए इस नेता को तमाम तरह की कमियों-खामियों ने घेर लिया था, परिवारवाद से लेकर बड़बोलेपन तक, अति-महत्वाकांक्षा से लेकर देश के प्रधानमंत्री के साथ दुर्व्यवहार तक देश ने बहुत कुछ देखा।वह देश के नेता बनना चाहते थे, पर तेलंगाना की जनता ने उन्हें प्रदेश लायक भी नहीं छोड़ा। इन चुनावी नतीजों से विपक्ष के तमाम नेताओं को सीखना होगा। केवल लोकलुभावन योजनाएं काम नहीं करती, बुनियादी स्तर पर संगठन और लोगों के बीच जाकर विश्वास जीतना होता है, इस बार भाजपा ने यही बेहतर ढंग से किया।