पसमांदा मुसलमान : भारत के वे मुसलमान जिनकी बात कोई नहीं करना चाहता है

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भोपाल में 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा दिए गए बयान के बाद विपक्ष में खलबली मची हुई है. प्रधानमंत्री ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए, UCC यानी कि ‘समान नागरिक संहिता’ पर बात की साथ ही उन्होंने पसमांदा मुसलमानों का भी जिक्र किया और कहा था कि उनके ही धर्म के एक वर्ग ने पसमांदा मुसलमानों का शोषण किया है. यह बयान महज एक पलटवार था जो ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता असदुद्दीन ओवैसी पर की गई थी.

खैर, आज हम बात करेंगे ‘पासमांदा मुसलमान’ के बारे में कि कौन है पसमांदा मुसलमान, पसमांदा शब्द को पहली बार किसने और कब इस्तेमाल किया. इनकी मांग क्या है और BJP पसमांदा के मुद्दे को आगामी चुनाव से क्यों जोड़ रही है?

पिछले कई सालों से मॉब लिंचिंग, कथित लव जिहाद, गौ तस्करी के आरोप में हत्या, मुस्लिम समुदायों के ऊपर लगाए जा रहे हैं. कितना सच है यह जांच का विषय है. जिसपर सरकार एक्शन ले रही है. आरोप और आरोपियों को जो सजा मिलना है उस पर कार्रवाई चल रही है.

बात करें, मुस्लिम समुदाय पसमांदा कि तो ‘सर्चर कमेटी’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इनकी संख्या मुस्लिमों की कुल आबादी का 40 प्रतिशत है, लेकिन इनके लिए काम करने वाले लोगों का कहना है कि ये मुस्लिम आबादी का 80 से 85 फीसदी हैं.

हम बात कर रहे हैं पसमांदा मुसलमानों की और उनके सामाजिक स्तर की. हम ये भी बात करेंगे कि एक बार फिर ये राजनीति के केंद्र में क्यों है.

पसमांदा मुसलमानों के बारे में जानने से पहले हमें मुस्लिम समाज के वर्गीकरण को जानना होगा. हालांकि इस्लाम हर तरह के वर्गीकरण के खिलाफ है, लेकिन यह भी सच है कि भारतीय मुस्लमानों में वर्गीकरण तो है.

बता दें, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को जानने, समझने और उनमें सुधार के लिए सुझाव देने के लिए बनी ‘राजिंदर सच्चर कमेटी (Rajinder Sachar Committee)’ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मुसलमानों को कुल तीन वर्गों में बांटा गया हैं. अशराफ, अजलाफ और अरजाल.

बात करें, भारत में अशराफ मुसलमानों कि तो इनकी जड़ें अफगानिस्तान, फारस, अरब और तुर्की से जुड़ी हैं. इनमें आते हैं सैयद, शेख, मुगल और पठान या फिर वो हिंदु जो अपना धर्म बदलकर मुसलमान बने.

दूसरा वर्ग है अजलाफ यानी मिडियम क्लास से कनवर्ट हुए लोग. जिन्हें हिन्दू ओबीसी के समकक्ष रखा जा सकता है.

और तीसरा वर्ग है अरजाल जिन्हें शेड्यूल कास्ट के समकक्ष रखा जा सकता है. जिसमें आती है कामगार जातियां धोबी, कसाई, दर्जी आदि.

वहीं, पसमंदा के शाब्दिक अर्थ पर जाएं तो ये एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘जो पीछे छूट गए’. पसमंदा एक छत्र पहचान है जिसका उपयोग पिछड़े, दलित और आदिवासी मुसलमानों द्वारा समुदाय के भीतर उनके खिलाफ जाति-आधारित भेदभाव को रेखांकित करने के लिए किया जाता है.

पसमंदा मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल पहली बार भारत में कब और किसने किया

“पसमंदा मुस्लिम” शब्द का इस्तेमाल पहली बार भारत में 1998 में राज्यसभा सांसद Ali Anwar Ansari ने किया था जब उन्होंने पसमांदा मुस्लिम महाज की स्थापना की थी. उनका कहना है कि पसमांदा में दलित मुस्लिम आते हैं लेकिन सभी पसमांदा दलित नहीं हैं. संवैधानिक रूप से कहे तो हम सभी एक ही कैटेगरी में हैं OBC. संविधान के मुताबिक मुस्लिम OBC और कुछ जनजातियों को आरक्षण मिलता है, लेकिन मुस्लिम दलितों का कोई जिक्र नहीं है.

जाति जनगणना के अनुसार पसमांदा मुसलमानों की संख्या क्या है?

जाति जनगणना के अभाव में पसमांदा मुसलमानों की वर्तमान संख्या का स्पष्ट अनुमान उपलब्ध नहीं है, लेकिन Sachar Committee की 206 की रिपोर्ट के मुताबिक OBC और SC/ST मुसलमानों की संख्या 40 प्रतिशत बताई गई है. हालांकि पसमांदा मुस्लिमों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता और जानकार इस आंकड़े से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि पसमांदा मुस्लिमों की संख्या कुल मुस्लिम आबादी का 80 से 85 प्रतिशत है. यह मोटे तौर पर 1871 की जनगणना से मेल खाता है. जिसमें कहा गया था कि भारत में केवल 19 प्रतिशत मुसलमान ऊंची जाति के थे, जबकि 81 प्रतिशत निचली जातियों से बने थे. Justice Ranganath Mishra Commission ने मई 2007 में अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें ये माना कि जाति व्यवस्था मुसलमानों सहित भारत के सभी धार्मिक समुदायों को प्रभावित किया है.

पसमांदा की प्रमुख मांगें क्या है?

पसमांदा मुसलमानों का कहना है कि मुस्लिम समुदाय के भीतर उनकी भारी संख्या होने के बावजूद नौकरियों, विधायिकाओं और सरकार द्वारा संचालित अल्पसंख्यक संसथानों और यहां तक कि समुदाय द्वारा संचालित मुस्लिम संगठनों में उनका प्रतिनिधित्तव कम है.

पसमांदा की प्रमुख मांगों में जाति जनगणना भी शामिल है. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कई पसमांदा संगठनों द्वारा पारित एक प्रस्ताव में मांग की गई थी कि दलित मुसलमानों को SC कैटोगरी में शामिल किया जाए और अतिपिछड़ी जाति श्रेणी बनाने के लिए OBC कोटा को फिर से डिजाइन किया जाए. केंद्र और राज्य स्तर पर हिंदू EBC के साथ-साथ सबसे पिछड़े मुसलमानों को भी शामिल किया जाए.

क्या पसमांदा मुस्लिमों का मुद्दा आगामी चुनाव का केंद्र बनेगी ?

पसमांदा मुस्लिमों की आबादी को देखते हुए BJP एक बड़े वोट बैंक को अपने पाले में करना चाहती हैं.  बता दें, हाल ही में प्रधानमंत्री मध्यप्रदेश दौरे पर गए थे. इस दौरान पीएम मोदी ने विपक्षी, महंगाई, समान नागरिक संहिता, एकता, तीन तलाक, भ्रष्टाचार और परमांदा मुसलमानों जैसे और भी कई मुद्दों पर बात कही थी.