NUTAN
लोहरदगा : रविवार को राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा जिला समिति लोहरदगा के द्वारा बिरसा मुंडा के पुण्यतिथि पर लोहरदगा शंख नदी मोड़ और कुटमू दरहा देशवाली कचहरी मोड़ स्थित भगवान बिरसा मुंडा के प्रतिमा में पुष्प माला देकर श्रृद्धांजलि अर्पित की गई। मौके पर राष्ट्रीय महासचिव जलेश्वर उरांव और जिला अध्यक्ष ने संयुक्त रूप से कहा कि धरातल पर आदिवासी समाज अंधविश्वासों की आंधियों में तिनके-सा उड़ रहा है तथा आस्था के मामले में भटका हुआ है। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि सामाजिक कुरीतियों के कोहरे ने आदिवासी समाज को ज्ञान के प्रकाश से वंचित कर दिया है। धर्म के बिंदु पर आदिवासी कभी मिशनरियों के प्रलोभन में आ जाते हैं, तो कभी ढकोसलों को ही ईश्वर मान लेते हैं।
भारतीय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था। बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को शोषण की नाटकीय यातना से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा।
जिला धर्मगुरु फूलकेश्वर उरांव ने कहा कि आर्थिक स्तर पर सुधार ताकि आदिवासी समाज को जमींदारों और जागीरदारों क आर्थिक शोषण से मुक्त किया जा सके। बिरसा मुंडा ने जब सामाजिक स्तर पर आदिवासी समाज में चेतना पैदा कर दी तो आर्थिक स्तर पर सारे आदिवासी शोषण के विरुद्ध स्वयं ही संगठित होने लगे। बिरसा मुंडा ने उनके नेतृत्व की कमान संभाली। आदिवासियों ने ‘बेगारी प्रथा’ के विरुद्ध जबर्दस्त आंदोलन किया। परिणामस्वरूप जमींदारों और जागीरदारों के घरों तथा खेतों और वन की भूमि पर कार्य रूक गया।केन्द्रीय उपाध्यक्ष सोमे उरांव ने कहा कि सामाजिक स्तर पर ताकि आदिवासी-समाज अंधविश्वासों और ढकोसलों के चंगुल से छूट कर पाखंड के पिंजरे से बाहर आ सके। इसके लिए उन्होंने ने आदिवासियों को स्वच्छता का संस्कार सिखाया। शिक्षा का महत्व समझाया। सहयोग और सरकार का रास्ता दिखाया। मीडिया प्रभारी नूतन कच्छप ने कहा कि सामाजिक स्तर पर आदिवासियों के इस जागरण से जमींदार-जागीरदार और तत्कालीन ब्रिटिश शासन तो बौखलाया ही, पाखंडी झाड़-फूंक करने वालों की दुकानदारी भी ठप हो गई। यह सब बिरसा मुंडा के खिलाफ हो गए। उन्होंने बिरसा को साजिश रचकर फंसाने की काली करतूतें प्रारंभ की। यह तो था सामाजिक स्तर पर बिरसा का प्रभाव।जिला सचिव ने कहा कि राजनीतिक स्तर पर आदिवासियों को संगठित करना। चूंकि उन्होंने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर आदिवासियों में चेतना की चिंगारी सुलगा दी थी। राजनीतिक स्तर पर इसे आग बनने में देर नहीं लगी। आदिवासी अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग हुए। सुधीर उरांव ने कहा कि आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा एक धार्मिक आंदोलन का नेतृत्व किया। बिरसा मुंडा आंदोलनकारी भारत एवं झारखण्ड में एक महान व्यक्ति बने। आज भारत देश के आदिवासियों उन्हें भगवान मानते है और धरती आबा के नाम से जाना जाता है। इस पुण्य तिथि के अवसर पर राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा लोहरदगा जिला समिति जिला धर्मगुरु फूलकेशर उरांव, जिला सचिव सुकेंद्र उरांव, उपाध्यक्ष सोमे उरांव, जिला महिला प्रकोष्ठ अध्यक्ष जयंती उरांव, मिडिया प्रभारी नूतन कच्छप, आदिवासी कर्मचारी समिति के मिडिया प्रभारी सुधीर उरांव, प्रदीप उरांव व आदिवासी समाज के अन्य अगुवागण मौजूद थे।