Eksandesh Desk
हजारीबाग: विनोबा भावे विश्वविद्यालय के शिक्षाशास्त्र विभाग के तत्वाधान में बुधवार को गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की 164वी जयंती पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ गुरुदेव के चित्र पर पुष्पार्पण तथा मंगल द्वीप प्रज्वलित कर किया गया। अध्यक्षता राजनीति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. सुकल्याण मोइत्रा ने की। अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. मोइत्रा ने रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा संबंधी दृष्टि पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया की टैगोर सार्वभौमिक मानवतावाद के प्रवर्तक थे। वह चाहते थे की शिक्षा के माध्यम से मनुष्य के अंदर की मानवता के सूक्ष्म बिंदुओं का विकास हो। संकीर्णता का उनके विचार में कोई स्थान नहीं था। टैगोर की शिक्षा संबंधी विचार में प्रकृति और संस्कृति की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने एक रोचक जानकारी देते हुए बताया कि 1924 से 1933 तक रविंद्रनाथ टैगोर के साहित्यिक सचिव के रूप में अमीय चक्रवर्ती ने अपनी सेवाएं दी जो हजारीबाग के संत कोलंबा महाविद्यालय के छात्र थे और यही से अंग्रेजी में डिग्री प्राप्त की थी। यह भी बताया कि जहां भारत और बांग्लादेश का राष्ट्रगान टैगोर द्वारा लिखी गई है वहीं श्रीलंका का राष्ट्रगान पर भी टैगोर का गहरा प्रभाव है और उसकी गीत एवं संगीत की रचना टैगोर के ही शिष्य आनंदा समाराकून के द्वारा किया गया है जो शांतिनिकेतन के विश्व भारती विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त किए थे।
रवींद्रनाथ टैगोर और मोहनदास करमचंद गांधी के आपसी संबंधों की चर्चा करते हुए डॉ मोइत्रा ने बताया कि जहां टैगोर ने गांधी को ‘महात्मा’ कहा वही गांधी ने टैगोर को ‘गुरुदेव’ कहा। कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता डॉ. प्रमोद कुमार ने अपने व्याख्यान में रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी एवं शैक्षिक दर्शन पर प्रकाश डाला। ‘यदि तुम्हारी पुकार को सुनकर कोई नहीं आए, तो अकेला ही चलो’ की उस प्रेरणादायक पंक्ति को याद करते हुए उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन के समय उनकी इस पंक्ति ने देशवासियों में असीम साहस और आत्मविश्वास का संचार किया। उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर के हज़ारीबाग़ आगमन तथा यहां से उनके संबंधों को भी बताया। एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता के रूप में टैगोर की पहचान और 1915 में ब्रिटिश हुकूमत से प्राप्त नाइटहुड की उपाधि को जलियांवाला बाग नरसंहार के विरोध स्वरूप वापस लौटने की घटनाओं की उन्होंने चर्चा की। ब्रह्म समाज के उत्थान सहित भारत के पुनर्जागरण एवं भारत की राजनीति में टैगोर परिवार के योगदान पर उन्होंने प्रकाश डाला।
विभाग के वरीय शिक्षक डॉ. मृत्युंजय प्रसाद ने विषय प्रवेश किया। मंच संचालन डॉ. विनीता बंकिरा एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अमिता कुमारी ने किया। सामूहिक रूप से राष्ट्रगान के गायन के साथ कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की गई। इस अवसर पर विभागीय प्राध्यापक डॉ. रजनीश कुमार , सुश्री शालिनी अवधिया, डॉ. कुमारी भारती, डॉ. चौधरी प्रेम प्रकाश तथा विभाग के 2023-25 के प्रशिक्षु उपस्थित रहे ।