संपादकीय : झारखंड को मानव तस्करी के कलंक से मुक्त कराना चुनौती

Editorial

Alok ranjan jha Dinkar

Ranchi : झारखंड में मानव तस्करी की समस्या निश्चित रूप से गंभीर हो गई है। हालांकि समय-समय पर मानव तस्करी की शिकार महिलाओं को मुक्त कराकर उन्हें पुनर्वासित किया जा रहा है, लेकिन शासन और प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने के कारण इस पर रोक नहीं लग पा रही है। बता दें कि राज्य की आदिवासी महिलाओं की तस्करी देश के महानगरों में घरेलू काम के लिए की जाती है। दिल्ली जैसे शहरों में कई अवैध प्लेसमेंट एजेंसियां उभरी हैं, जो कानूनी खामियों का फायदा उठाकर रोजगार दिलाने के नाम पर ज्यादातर मासूम लड़कियों को जबरन मजदूरी और शोषण के दलदल में धकेल देती हैं। इनसे हर दिन 12-14 घंटे काम करवाना आम बात है। बचाई गई लड़कियों में से कई ने शारीरिक और यौन शोषण की भी शिकायत की है। दिल्ली में बचाई गई पीड़ितों से यौन दासता के कई मामले सामने आए हैं। कुछ पीड़ितों को बंधुआ मजदूरी और जबरन शादी के उद्देश्य से हरियाणा और पंजाब तस्करी कर लाया जाता है। कुछ खबरों में यह भी बताया गया है कि झारखंड से सरोगेसी के लिए महिलाओं की तस्करी बढ़ रही है, जहां वे बच्चे को जन्म देती है और फिर उन्हें बेच दिया जाता है। यह नहीं है कि झारखंड मानव तस्करी का केवल एक स्रोत है, बल्कि यह गंतव्य भी है। अक्सर छत्तीसगढ़ और अन्य पड़ोसी राज्यों से लड़कियों की तस्करी कर झारखंड लाई जाती है।

उल्लेखनीय है कि झारखंड सरकार के महिला बाल एवं विकास विभाग की ओर से संचालित एकीकृत पुनर्वास केंद्र, नई दिल्ली ने दिल्ली पुलिस और स्थानीय एनजीओ के सहयोग से दिल्ली एवं दिल्ली के आसपास के राज्यों के विभिन्न स्थानों से 12 से 17 साल की उम्र की बच्चियों को रेस्क्यू किया है। इसमें खूंटी की 7 और साहिबगंज एवं गोड्डा की 18 बच्चियां शामिल हैं। विभाग ने इससे पहले भी तस्करी की शिकार राज्य की सैकड़ों बच्चियों और महिलाओं को मुक्त कराकर पुनर्वासित किया है। साथ ही उन्हें कई योजनाओं का लाभ भी दिया गया है। ये कार्रवाई निश्चित रूप से महिला एवं बाल विकास विभाग की संवदेनशीलता को दर्शाती हैं, लेकिन सवाल उठता है कि मानव तस्करी से संबंधित तमाम संवैधानिक एवं विधायी उपाय होने के बावजूद इस पर रोक क्यों नहीं लग पा रही है? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23(1) के तहत मानव या व्यक्तियों की तस्करी प्रतिबंधित है। वहीं अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (आईटीपीए) वाणिज्यिक यौन शोषण के लिए तस्करी की रोकथाम के लिए प्रमुख कानून है। इसके अलावा भी शारीरिक शोषण या किसी भी प्रकार के यौन शोषण, गुलामी, दासता आदि के साथ बच्चों और बच्चियों की तस्करी के खतरे से निपटने के लिए व्यापक उपाय किए गए हैं। हालांकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कई बार कहा है कि राज्य से मानव तस्करी के कलंक को मिटाना उनकी सरकार की प्राथमिकता है। उन्होंने इस दिशा में कई सार्थक प्रयास भी किए हैं, लेकिन चिंता की बात है कि धरातल पर बहुत बदलाव नजर नहीं आ रहा है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि निरक्षरता, स्थायी रोजगार की कमी, कृषि के लिए खराब सिंचाई सुविधाएं, एक फसल पैटर्न, जागरूकता की कमी, राजनीतिक अस्थिरता जैसे कारणों से लोग मानव तस्करी के शिकार हो रहे हैं। तस्कर इन स्थितियों का फायदा उठाकर लोगों खासकर महिलाओं को असुरक्षित प्रवास के लिए मजबूर करते हैं। खबरें बताती हैं कि राज्य के आदिवासी इलाकों से हजारों लड़कियां लापता हो गई हैं। झारखंड के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के आदिवासी जिले तस्करी के मामले में ज्यादा संवेदनशील हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि मानव तस्करी की समस्या के समाधान लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है। राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो हम न केवल अपनी बहनों और बेटियों की सुरक्षा कर सकते हैं, बल्कि योजनाओं को सही से लागू कर और उनकी सतत निगरानी कर इन्हें सशक्त भी बना सकते हैं।