Alok ranjan jha Dinkar
रांची : विश्व खुशहाली सूचकांक में भारत का खराब प्रदर्शन जारी रहना निश्चित रूप से चिंताजनक है। हालांकि पिछले साल की तुलना में थोड़ा बहुत सुधार हुआ है, लेकिन दुनिया के कई युद्धरत देशों की रैंकिंग भी भारत से अच्छी है, जिसमें यूक्रेन, फिलिस्तीन, इराक और ईरान जैसे देश शामिल हैं। हैरानी की बात है कि सबसे खुशहाल देशों की सूची में पाकिस्तान भी भारत से आगे है। दक्षिण एशियाई देशों में सिर्फ तालिबान शासित अफगानिस्तान की स्थिति भारत से खराब है। सवाल है कि भारत को प्रसन्नता की वैश्विक सूची में ऊपर कैसे लाया जा सकता है? क्या हम दुनिया को यह संदेश नहीं दे सकते हैं कि हम भी किसी से कम खुशहाल नहीं? जाहिर है इसके लिए व्यवस्थागत और नीति निर्माण के स्तर पर आमूलचूल बदलाव करने होंगे। भ्रष्टाचार, गरीबी, स्वास्थ्य जैसी चुनौतियों से निपटने के साथ ही समाज में घृणा और आक्रोश फैलाने वालों के प्रति सख्ती दिखानी होगी। बेरोजगारी हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है। देश के युवाओं के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर न होने के कारण वे डिप्रेशन और नशे की गिरफ्त में आकर आत्महत्या तक कर रहे हैं। इस पर हमें विचार करने की जरूरत है। यह सही है कि सिर्फ आर्थिक संपन्नता ही खुशी का आधार नहीं है और यह अलग-अलग आयामों पर निर्भर करती है, लेकिन बुनियादी आर्थिक जरूरतें पूरी होने पर खुशहाली आ सकती है?
उल्लेखनीय है कि इग्लैंड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वेलबीइंग रिसर्च सेंटर की वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट-2025 के अनुसार, फिनलैंड लगातार आठवें साल दुनिया का सबसे खुशहाल देश बना है। डेनमार्क, आइसलैंड, नार्वे और स्वीडन भी शीर्ष 10 में शामिल है। गैलप, वेलबीइंग रिसर्च सेंटर और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क ने यह सूची तैयार करने में 130 से अधिक देशों की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, सामाजिक समर्थन, स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा, स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार से मुक्ति के प्रयासों का ध्यान रखा गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक बात जो फिनलैंड को अन्य देशों से अलग रखती है, वह है परोपकारी कार्यों का महत्व। परोपकार करने से खुशी को भी बढ़वा मिलता है। संयुक्त राज्य अमेरिका शीर्ष 10 की सूची में जगह बनाने में विफल रहा और वास्तव में पिछले साल के 23वें स्थान से गिरकर 24वें स्थान पर आ गया। इससे स्पष्ट होता है कि अपने लोगों को खुश करने के लिए दुनिया के सबसे धनी देशों में से एक होने की जरूरत नहीं है। ऐसे में कहा जा सकता है कि समाज में प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देकर और अपने लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा कर हम अपने देश को खुशहाल बना सकते हैं।
सवाल है कि क्या एक देश के रूप में यह हमारे लिए सामूहिक शर्म की बात नहीं होनी चाहिए कि कई युद्धरत और आर्थिक रूप से कमजोर देश के लोग भी हमसे ज्यादा खुश हैं? क्या इस तथ्य को आसानी से स्वीकार किया जा सकता है कि दक्षिण एशिया में हम सिर्फ अफगानिस्तान के लोगों से ज्यादा खुश हैं? पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देश भी इस मामले में हमसे आगे हैं। यह सही है कि वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट-2025 की सूची में शामिल शीर्ष देशों के स्तर पर पहुंचना फिलहाल हमारे लिए लगभग नामुमकिन है, लेकिन क्या हम अपनी स्थिति दक्षिण एशियाई देशों से भी बेहतर नहीं कर सकते? एक देश और समाज के रूप में हमें इस पर सोचने और काम करने की जरूरत है कि वास्तव में खुशहाली ही विकास का सही मानदंड है। यह नहीं है कि वैश्विक खुशहाली सूचकांक में पूर्व के वर्षों में भारत की स्थिति अच्छी थी। यह दुखद है कि दुनिया में खुशहाली और शांति का संदेश देने वाले हमारे देश में लगातार निराशा और अशांति बढ़ रही है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, पांचवीं अर्थव्यवस्था, भरपूर संसाधन, सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सशक्त होने का दावा करने के बावजूद अगर हम खुशहाली के निर्धारित वैश्विक पैमाने पर खरे नहीं उतर रहे हैं, तो यह हमारी राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खरा करता है।