रांची: धर्मांतरण का विरोध होता रहा आदिवासी भाइयों के हितों के लिए, लेकिन धर्मांतरण का खेल अभी समझ आ रहा है। की दोहरी लाभ लेने के लिए किया जा रहा है। अल्पसंख्यक का लाभ और आदिवासी हितों का लाभ। सरकार आदिवासी भाइयों का हित चाहती है तो डिलिस्टिंग का फार्मूला लागू करें। इसे दबाया गया था। धर्मांतरण और जनजातीय आरक्षण का फॉर्मूला यह कहता है, कि बरसो से यह विकराल रूप ले लिया है। जनजातीय समाज वंचित हो गया है सरकारों ने जनप्रतिनिधियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया, मशीनरियों के दबाव में, करीब 70% आरक्षण का लाभ जनजाति की आड़ में मिशनरियों के जरिए धर्मांतरण कर चुके लोग उठा रहे हैं। जिसमें राज्य के सभी विभागों में इनका वर्चस्व है। इसलिए जनजाति समुदाय के आरक्षण का लाभ समाज को नहीं मिल रहा है। देश में अधिक नुकसान हमारे राज्य झारखंड को ही हुआ है। यही धर्मांतरण का खेल चल रहा है। लेकिन अब नए तरह का आंदोलन करना होगा डीलिस्टिंग के लिए।
संविधान के नियमो को राजनेता सब जानते हैं पर मौन साधे हुए हैं। सरकार आई गई बातें करते हैं कि 23 वर्ष से झारखंड का विकास नहीं हुआ। विकास होगा भी तो कैसे, क्योंकि यहां के आदिवासी समुदाय का हक दूसरे धर्म के लोग ले रहे हैं। सरकार वोट बैंक की राजनीति के तहत चुप है। भारतीय जनतंत्र मोर्चा सरकार का ध्यान आकृष्ट करना चाहती है की डीलिस्टिंग को लागू कर आने वाली पीढ़ी को लाभ दिलाने में मददगार बने और आरक्षण के साथ अन्य सुविधा भी लोग आदिवासी भाइयों के नाम पर उठा रहे हैं वह बंद हो। आदिवासी भाइयों के लिए आरक्षित विधानसभा, लोकसभा पंचायत के जो भी पद है। उसका भी लाभ आदिवासी भाइयों को ही मिले, चुनाव आदिवासी भाई हि लड़े। धर्म परिवर्तित लोग नहीं। भारतीय जनतंत्र मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष धर्मेंद्र तिवारी ने कहा कि हम सबों को धन्यवाद देना चाहिए। बाबा कार्तिक उरांव जी को जिन्होंने डीलिस्टिंग का मुद्दा 60 वर्ष पहले उठाया था। 70 वर्षों से इसका लाभ धर्मांतरित लोग ले रहे हैं, जनजातीय समाज के नहीं। सांसद में यदि यह लागू हो जाता तो आज आदिवासी समाज की स्थिति कुछ और होती, लेकिन कांग्रेस की सरकार ने चाल चलकर इसे पूर्ण ना होने दिया। उनके प्रस्ताव को खारिज कर दिया। केंद्र के सरकार और राज्य की सरकार मिलकर जल्द इस पर फैसला ले डीलिस्टिंग को लागू कर वनवासियों को तोहफ़ा दें, ताकि उनका अधिकार मिल सके।