पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर जो भगवान जगन्नाथ (श्री कृष्ण जी) को समर्पित है. यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है. जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है. इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है. इस मंदिर को हिंदुओं के चार धाम में से एक माना जाता है.
भारत में जगन्नाथ जी के कई मंदिर हैं जिनमें ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ जी की मंदिर सबसे पहले बनी थी, इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोड़गंग ने अपनी राजधानी को दक्षिणी ओडिशा से मध्य ओडिशा में स्थानांतरित करने की खुशी में करवाया था. इसके अलावा जितने भी भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर हैं ये सभी पुरी के जगन्नाथ मंदिर से प्रेरित होकर बनाई गई हैं.
मुगलों के द्वारा तोड़े गए हिंदु मंदिरों की चर्चा हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हैं, उनमें से तोड़े गए 1000 से अधिक मंदिर तो सिर्फ औरंगजेब के नाम हैं. पर हम आज बात करेंगे पुरी के जगन्नाथ मंदिर के बारे में तो आईए समझते हैं कि इस मंदिर के बनने और तोड़ने की अनसुनी कहानियों के बारे में.
पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर के चमत्कारों से पूरी दुनिया परिचित हैं लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस मंदिर पर कुल 17 बार हमले हुए हैं. इतने बार हमले होने के बावजूद इस मंदिर पर और इसके चमत्कारों पर कोई असर नहीं हुआ.
सबसे पहला हमला- जगन्नाथ मंदिर पर पहला हमला 1340 में इलियास शाह ने किया. इलियास शाह बंगाल के सुल्तान थे. उस वक्त ओडिशा, उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था. उत्कल साम्राज्य के नरेश नरसिंह देव तृतीय ने सुल्तान इलियास शाह से युद्ध में लोहा लिया. यह लड़ाई मंदिर के परिसर में हुई. बंगाल के सुल्तान इलियास शाह के सैनिकों ने निर्दोष लोगों को मारा और मंदिर का परिसर खून से लाल कर दिया. लेकिन राजा नरसिंह देव, भगवान जगन्नाथ जी की असली मूर्तियों को बचाने में सफल रहे, क्योंकि उनके आदेश पर मूर्तियों को पहले ही छुपा दिया गया था.
दूसरा हमला- सन 1360 में इस मंदिर पर दूसरी बार हमला सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के द्वारा करवाया गया. जिसमें मंदिर का एक चौथाई हिस्सा को गिरा दिया गया.
तीसरा हमला- इस मंदिर पर तीसरा हमला वर्ष 1509 में इस्माइल गाजी ने अलाउद्दीन हुसैन शाह के कहने पर किया था, अलाउद्दीन हुसैन शाह उस समय बंगाल के सुल्तान थे और इस्माइल गाजी इसका कमांडर था. इस हमले में 1360 की तरह असली मूर्तियों को पुजारियों के द्वारा हमले से पहले ही बंगाल की खाड़ी में चिलका लेक नामक एक द्वीप में छुपा दिया गया था. इस लड़ाई में मंदिर को ध्वस्थ कर दिया गया. यह लड़ाई प्रताप रुद्रदेव और बंगाल के सुल्तान के बीच हुगली में हुई थी.
चौथा हमला- 1568 में हुआ चौथा हमला सबसे बड़ा हमला माना जाता हैं क्योंकि इस हमले में मंदिर के साथ-साथ मूर्तियों को जलाया गया और तोड़ा गया, साथ ही जगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला को काफी नुकसान पहुंचा गया. इस हमले में भी असली मूर्तियों को उसी चिलका द्वीप में छुपा दिया गया था. यह लड़ाई इतिहासिक माना जाता है क्योंकि इस साल के युद्ध के बाद ओडिशा सीधे इस्लामिक शासन के तहत आ गया.
पांचवां हमला- वर्ष 1592 में हुआ पांचवां हमला सुल्तान ईशा के बेटे उस्मान और कुथू खाम के बेटे सुलेमान ने किया था. इस हमले में लोगों को बेरहमी से मारा-पीटा, मूर्तियों को अपवित्र किया और मंदिर की संपदा को लूट कर ले गया.
छठा हमला- वर्ष 1601 में छठा हमला खुर्रम खां ने किया. खुर्रम खां बंगाल के नवाब इस्लाम खान के कमांडर थे. इस हमले में मंदिर का नुकसान तो जरूर हुआ पर पुजारियों के द्वारा असली मूर्तियों को भार्गवी नदी के रास्ते नाव के द्वारा पुरी के पास एक गांव कपिलेश्वर में छुपा दिया गया.
सातवां हमला- जगन्नाथ मंदिर पर सातवां हमला ओडिशा के सूबेदार हाशिम खान ने किया लेकिन हमले से पहले असली मूर्तियों को मंदिर से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर खुर्दा के गोपाल मंदिर में छुपा दिया गया. इस हमले में भी मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था. 1608 में जगन्नाथ मंदिर में उस मूर्तियों को दोबारा वापस लाया गया.
आठवां हमला- जगन्नाथ मंदिर का आठवां हमला सबसे अलग था. हर बार की तरह इस बार किसी मुगलों ने नहीं बल्कि एक हिंदु जागीरदार ने किया था. यह जागीरदार हाशिम खान की सेना में काम करते थे. हाशिम खान के आदेश पर इस हिंदु जागीरदार ने हमला किया. मंदिर का नुकसान इस हमले में भी हुआ था पर उस वक्त मंदिर में मूर्तियां मौजूद नहीं थी. मंदिर का धन लूट कर मंदिर को किले में बदल दिया गया था.
नौंवा हमला- इस मंदिर पर नौवां हमला वर्ष 1611 में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल राजा टोडरमल के बेटे राजा कल्याणमल ने किया था. इस बार भी पुजारियों ने मूर्तियों को बंगाल की खाड़ी में मौजूद एक द्वीप में छुपा दिया था.
दसवां हमला- दसवां हमला भी कल्याणमल ने किया था, इस हमले में मंदिर को बुरी तरह लूटा गया था.
11वां हमला- जगन्नाथ मंदिर पर 11वां हमला 1617 में मुकर्रम खां ने किया जो दिल्ली के बादशाह जहांगीर के सेनापति थे. जहांगीर के आदेशानुसार मुकर्रम ने इस मंदिर को तोड़ा पर असली मूर्तियां इस बार भी हाथ नहीं लगने दिया गया. इस बार मूर्तियों को हमले से पहले गोबापदार नामक जगह पर छुपा दिया गया था.
12वां हमला- वर्ष 1621 में इस मंदिर पर 12वां हमला हुआ था. इस बार का हमला मुगल गवर्नर मिर्जा अहमद बेग के द्वारा किया गया था. पहले की तरह इस बार भी पुजारियों ने मूर्तियों को छुपा दिया था.
13वां हमला- मंदिर पर 13वां हमला ओडिशा के मुगल गवर्नर मिर्जा मक्की ने 1641 में किया था.
14वां हमला- मंदिर पर 14वां हमला भी मिर्जा मक्की के द्वारा ही किया गया था.
15वां हमला- जगन्नाथ मंदिर पर 15वां हमला 1645 में अमीर फतेह खान ने किया था. इस हमले में उसने रत्नभंडार में रखे जितने भी कीमती आभूषण, सोना, हीरा, मोती थे सभी को लूट कर ले गया और मंदिर को तोड़ दिया. हर बार की तरह इस बार भी असली मूर्तियों को ले जाने में असफल रहा.
16वां हमला- मंदिर पर 16वां हमला मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर वर्ष 1692 में हुआ. औरंगजेब ने बंगाल प्रांत के अपने सूबेदार, अमीर-उल-उमरा को इसे ध्वस्त करने का आदेश दिया और अमीर-उल-उमरा ने इकराम खान को यह काम सौंपा था क्योकि तब ओडिशा का नवाब इकराम खान था, जो मुगलों के अधीन था. इकराम खान ने जगन्नाथ मंदिर पर हमला कर भगवान का सोने के मुकुट लूट लिया. उस वक्त जगन्नाथ मंदिर की मुर्तियों को श्रीमंदिर नामक एक जगह के बिमला मंदिर में छुपाया गया था.
17वां हमला- मंदिर पर 17वां और आखिरी हमला, वर्ष 1699 में मुहम्मद तकी खान ने किया था, तकी खान, वर्ष 1727 से 1734 के बीच ओडिशा का नायब सूबेदार था. इस बार भी मूर्तियों को छुपाया गया और लगातार दूसरी जगहों पर शिफ्ट किया गया. कुछ समय के लिए मूर्तियों को हैदराबाद में भी रखा गया.
मंदिर को बार-बार तोड़े जाने और असली मूर्तियों की चोरी होने के डर से भगवान जगन्नाथ जी की असली प्रतिमा को 144 वर्षों तक छुपाकर रखा गया और आम लोगों को भी इस सच्चाई का भनक तक नहीं लगा.