आदिवासी नेताओं की केंद्र सरकार को अल्टीमेट्म, कहा 2024 से पहले पारित करें सरना आदिवासी धर्मकोड

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राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में बीते शनिवार सरना आदिवासी धर्मकोड को लेकर आदिवासियों का महाजुटान हुआ. इस महाजुटान में 9 राज्यों के आदिवासियों के साथ-साथ भूटान व नेपाल से भी आदिवासियों के प्रतिनिधिमंडल शामिल हुए.
आदिवासी समूहों ने मंच से इस दौरान केन्द्र सरकार को 2024 लोकसभा चुनाव से पहले सरना धर्मकोड लागू करने की बात कही है. साथ ही इस दौरान आक्रोशित आदिवासी नेता ने कहा है कि – केन्द्र सरकार अगर 2024 के आम चुनाव से पहले सरना धर्मकोड लागू नहीं करती है तो आदिवासी समाज आम चुनाव का संपूर्ण बहिष्कार करेगा.

सरना धर्मकोड आखिर है क्या
भारत सहित समूचे राज्यों में आदिवासियों के लिए पूजा स्थलों की एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसे सरना स्थल कहते हैं. इन्हीं सरना स्थलों को आधार मानकर आदिवासी पिछले 61 साल से सरना धर्मकोड की मांग कर रहे हैं. हालांकि आदिवासियों के लिए आजादी से पहले सन् 1871 से 1951 तक जनगणना के लिए अलग धर्म कॉलम की व्यवस्था की गई थी, जिसे बाद के वर्षो में हटा दिया गया. आदिवासियों के लिए धर्म कॉलम की व्यवस्था इसलिए खत्म हुई क्योंकि संविधान से आदिवासी शब्द को हटाकर अनुसूचित जनजाति शब्द जोड़ दिया गया था. हालांकि उस दौरान संविधान सभा में तत्कालीन सांसद जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासी शब्द हटाए जाने का कड़ा विरोध किया था,
जिसके प्रतिउत्तर में संविधान सभा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ बी.आर अंबेडकर ने कहा था कि आदिवासी शब्द में समूचे जनजातीय समाज का अर्थ निहित एवं विस्तारित नहीं है.

झारखंड की राजनीति में आदिवासिओं की मांग का असर
साल 2011 में हुई जनगणना के अनुसार झारखंड में आदिवासियों की कुल संख्या करीब 86 लाख के आस-पास है. इनमें सरना धर्म मानने वाले आदिवासियों की संख्या 40,12,622 है. आदिवासी बहुल राज्य झारखंड सहित अन्य राज्यों में पिछले कुछ वर्षो से सरना धर्मकोड लागू करने की मांगे तेज हुई है. झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में इसे लेकर तीखे आंदोलनों का असर भी राजनीतिक पार्टियों पर देखने को मिला है.

इसी क्रम में 11 नवंबर 2020 को झारखंड के विधानसभा में विशेष सत्र बुलाई गई, जिसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार ने सरना आदिवासी धर्मकोड बिल विधानसभा से पारित कराकर, मंजूरी के लिए सरना आदिवासी धर्मकोड बिल केन्द्र के पास भेजा था.

संविधान के मुताबिक धर्म के मामले में कानून बनाने का अधिकार केंद्र के पास है, जबकि इसे लागू करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास ही है. हालांकि झारखंड सरकार के अलावा बंगाल, उडीसा व छत्तीसगढ़ सरकारों द्वारा केंद्र सरकार को भेजा गया सरना आदिवासी धर्मकोड बिल, पिछले तीन वर्षो से मंजूरी के इंतजार में अब भी अधर में लटका है.

सरना आदिवासी धर्मकोड की मांग के पीछे यह है तर्क
साल 2011 की जनगणना के अनुसार देशभर में आदिवासिओं की कुल आबादी 10,42,81,203 ( 10 करोड़ 43 लाख के आस-पास) है, जो कुल आबादी का 8.6 फीसद है. अधिकतर आदिवासिओं का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में आदिवासियों का धर्मांतरण तेजी से बढ़ा है. इसे लेकर ईसाई मिशनरी व हिंदू संगठनों पर लगातार आरोप लगते रहे हैं. झारखंड सरकार के गृह विभाग से मिली जानकारी के अनुसार आदिवासियों की हिंदू व ईसाई धर्म के साथ-साथ मुस्लिम, बौद्ध व जैन धर्मों में भी धर्मांतरण बड़े पैमाने पर हुआ है.

सरना धर्मकोड की मांग कर रहे ज्यादातर आदिवासी नेताओं का मानना है कि देश में हो रहे धर्मांतरण से आदिवासिओं की संस्कृति व परंपरा का लगातार अन्य धर्मों के लोग दोहन कर रहे हैं.
बीते शनिवार को रांची के मोहराबादी मैदान में हुए आदिवासी महाजुटान में धर्मांतरण को लेकर आदिवासी सक्रिय दिखे, साथ ही इस दौरान आदिवासी समाज ने महत्वपूर्ण प्रस्ताव को भी पारित किया है, जो इस प्रकार हैं.

  1. आदिवासी महिला यदि गैर- आदिवासी से विवाह करती है तो उस महिला का आदिवासी स्टेटस एवं अधिकार समाप्त कर दिया जाए.
  2. आदिवासिओं की सामाजिक व सांस्कृतिक व्यवस्था की परिसंपत्तियों को चिंहित कर सुरक्षित कराया जाए और इनके विकास के लिए राज्य सरकार राशि आवंटित करे.

रिपोर्ट : आकाश आनंद, रांची

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