LCD और AMOLED दोनों में क्या और कितना अंतर हैं?

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रोज़-मर्रा की जिंदगी में मोबाइल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला साथी बन गया है, मोबाइल का इस्तेमाल लोग अपने-अपने तरीके से करते है. गेम खेलने से लेकर ऑफिस के जरूरी काम को करने तक में हो रहा है और इसका इस्तेमाल लोग घंटों तक आंख गड़ाए करते हैं. मोबाइल और आंख के बीच डिस्प्ले का अहम रोल होता है, डिस्प्ले का सही चयन ना होने से आंख और सिर दर्द जैसी समस्या का असर दिखने लगता है. इन दिनों सस्ते और महंगे मोबाइल बाजारों में धड़ल्ले से बेचे जा रहे हैं और कस्टमर अपने बजट के अनुसार इसे खरीदते हैं. जिस तरह फोन में एक अच्छे प्रोसेसर का चयन करना जरूरी होता है ठीक इसी तरह फोन में एक अच्छा डिस्प्ले का चयन बहुत जरूरी होता है. डिस्प्ले कितने तरह के होते हैं और ये मोबाइल में कैसे काम करता है, चलिए समझते है

मोबाइल में लगने वाला डिस्प्ले कितने प्रकार के होते हैं?

बजट और खूबियों को देखने के बाद कस्टमर डिस्प्ले कौन सा लगा हुआ है इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं जबकि इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए. बता दें, भारत के बाजारों में बेचे जाने वाले मोबाइल जिसमें लगे डिस्प्ले लगभग छः प्रकार के मिलते हैं. LCD (Liquid Crystal Display),  IPS-LCD (In-Plane Switching Liquid Crystal Display),  OLED (Organic Light-Emitting Diode), AMOLED (Active-Matrix Organic Light-Emitting Diode), TFT (Thin Film Transistor),और TFD (Thin Film Diode) है.

LCD क्या है और कैसे काम करता है?

LCD डिस्प्ले, इस नाम को आपने पहले भी खूब सुना होगा. बात करें LCD कि तो इसका पूरा नाम लिक्विड क्रिसटल डिस्प्ले है. LCD को सबसे पहले 1888 में बनाया गया था. पहले की अपेक्षा आज के समय में इसे बहुत बेहतर बनाया गया है. LCD एक ऐसी technology है जिसका इस्तेमाल display के हिसाब से किया जाता है. इसके जरूरत के हिसाब से इसका आकार छोटा या बड़ा बनाया जा सकता है. यह एकमात्र ऐसा डिस्प्ले है जो आमतौर पर सबसे अधिक लगाए जाने वाले डिस्प्ले में से एक है. कई लोग ऐसे भी होंगे जिन्होंने LCD के बारे में ना तो सुना होगा और ना इसकी जानकारी होगी. तो आइए जानते हैं LCD डिस्प्ले क्या होता है और यह कैसे काम करता है. यह एक फ्लैट-पैनल डिस्प्ले है या यह कह ले अन्य इलेक्ट्रॉनिक रूप से मॉड्यूटेड ऑप्टिकल डिवाइस है जो कि पोलराइज़र के साथ संयुक्त लिक्विड क्रिस्टल के लाइट-मॉड्यूलेटिंग गुणों का उपयोग करता है. लिक्विड क्रिस्टल सीधे लाइट का उत्सर्जन नहीं करते हैं लेकिन इसके बजाय रंग या मोनोक्रोम में चित्र बनाने के लिए बैकलाइट या रिफ्लेक्टर का उपयोग करते हैं. जिन्हें दिखाया या छिपाया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर समझाए तो इसमें शब्द, अंक और डिजिटल घड़ी की तरह छःअलग-आलग खंड वाले डिस्प्ले प्लेट होते हैं, ऐसे डिस्प्ले वाले टूल्स अच्छे उदाहरण हैं. यह हमेशा एक ही टेक्नोलोजी का प्रयोग करते हैं, इसमें दिखाई दी जाने वाली चित्र छोटे पिक्सेल के मैट्रिक्स से बने होते हैं, जबकि अन्य डिस्प्ले में बड़े एलिमेंट्स के होते हैं. LCD या तो सामान्य रूप से ON (पॉजेटीव) या OFF (निगेटीव ) हो सकते हैं, बता दें, बैकलाइट के साथ एक कैरेक्टर ON LCD में बैकग्राउंड पर काला अक्षर होगा जो कि बैकलाइट का रंग है, और एक कैरेक्टर OFF LCD में एक काले रंग की बैकग्राउंड होगी जिसमें अक्षर बैकलाइट के समान रंग के होंगे. नीले एलसीडी पर सफेद रंग में ऑप्टिकल फिल्टर जोड़े जाते हैं ताकि उन्हें उनकी विशिष्ट उपस्थिति दी जा सके LCD का उपयोग LCD टीवी, कंप्यूटर मॉनीटर, इंस्ट्रूमेंट पैनल, एयरक्राफ्ट कॉकपिट डिस्प्ले इत्यादि जगहों पर उपयोग किया जाता है. एलसीडी स्क्रिन का इस्तेमाल डिजिटल कैमरा, घड़ियां, कैलकुलेटर और स्मार्टफोन सहित मोबाइल टेलीफोन में किया जाता है.

 

LCD दो तरीकों से काम करता है

LCD को मुख्यरुप से दो भागों में बांटा गया है. पहला भाग फिल्ड एफेक्टिव डिस्प्ले Field Effect Display (FED) है, इसमें जो डिस्प्ले ग्लास होता है उसके Front और Back साइड में 90 डिग्री के एंगल पर एक दूसरे के सामने रखा होता है फिर electrical excitation के, यहां पर जो light आती है वो Front polarizer से आमतौर पर fluid 90° घूम जाती है. दूसरा भाग डायनामिक स्कैटरिंग डिस्प्ले– Dynamic Scattering Display (DSD) है जो इस Dynamic Scattering Display में दो ग्लास को sandwich किया जाता है एक बहुत ही पतले LC Material का लेयर होता है. ग्लास के अंदर वाले faces में एक transparent conductive coating पाया जाता है. इसलिए जैसे ही इसमें voltage को apply किया जाता है तब liquid crystal molecules खुदबखुद बनने लगते है और randomly घूमने लगते हैं. इससे एक “Turbulence” पैदा होती है और जिससे ये light को फैलाना शुरू करती है और अंत में इसमें “White Appearance” दिखाई पड़ती है.

AMOLED क्या है और कैसे काम करता है?

AMOLED एक तरह का डिस्प्ले वर्जन है. आमतौर पर मोबाइल डिस्प्ले के लिए इस्तेमाल किए जाते है इसके अलावा यह टेलीविजन में इस्तेमाल होनी वाली OLED डिस्प्ले का ही एक वेरिएंट है. AMOLED का पूरा नाम Active Matrix Organic Light Emitting Diode है. बता दें, AMOLED में OLED डिस्प्ले की खासियत होती है जैसे हाई ब्राइटनेस, शार्पनेस, कलर रिप्रोडक्शन, और बेहतर बैटरी लाइफ. AMOLED डिस्प्ले में TFT यानी थिन फिल्म ट्रांजिस्टर होता है जो पिक्सल को सही दिशा में भेजने के पूरे प्रोसेस को आसान बना देता है. वहीं, एक्टिव मैट्रिक्स की मदद से TFT को अलग-अलग पिक्सल को ऑपरेट करने का कंट्रोल मिल जाता है.

LCD और AMOLED दोनों के कलर क्वालिटी में कितना फर्क है?

बात करे दोनों के डिस्प्ले क्वालिटी कि तो बता दें डिस्प्ले कि क्वालिटी  उसके कलर्स और शार्पनेस से आंकी जाती है. टेक्नोलॉजी के स्तर से किसी भी डिस्प्ले कि क्वालिटी को आंका नहीं जा सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि दो अलग-अलग डिस्प्ले बनाने वाली कंपनी एक ही टेक्नोलॉजी से किसी डिस्प्ले को बनाते हैं इसलिए उनमें अंतर करना मुश्किल होता है.वहीं AMOLED डिस्प्ले क्वालिटी कि बात करें तो इसमें हर एक पिक्सल अपनी लाइट प्रोड्यूस करता है साथ ही हाई-कॉन्ट्रासिंग कलर्स  बेहतर क्वालिटी देते हैं. जबकि LCD के पिक्सल की लाइट का सोर्स बैकलाइट होता है. AMOLED में तीन से अधिक कलर्स होते हैं जबकि LCD में व्हाइट, रेड और ब्लू कलर ही होता है। यही एकमात्र कारण है कि AMOLED डिस्प्ले के कलर्स ज्यादा बेहतर होते हैं क्योंकि इसके व्हाइट्स में येलो और रेड टिंट दिया गया होता है जिससे तेज धूप में भी फोन का इस्तेमाल कर सकते हैं वहीं LCD में बैकलाइट सोर्स के कारण तेज धूप में फोन का इस्तेमाल करना मुश्किल होता है.

LCD और AMOLED दोनों के बैटरी क्षमता में कितना फर्क है?

बात करे दोनों के बैटरी परफॉर्मेंस कि तो बता दें AMOLED वाला फोन को अगर बंद कर देते है तब बैटरी  की कम खपत होती है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि AMOLED फोन मे. ब्लैक बैकग्राउंड होता है वहीं  LCD में डेडिकेटेड बैकलाइट बैकग्राउंड  हमेशा ऑन रहता है, बैकग्राउंड  होने से यूजर को लगता है स्क्रीन ऑफ है पर वे ऑन ही रहते है इसलिए LCD में बैकलाइट  के हमेशा ऑन रहने से इसकी बैटरी खपत AMOLED से अधिक होता है.