जानिए पुराने संसद का इतिहास, क्या टूट जाएगा पुराना भवन?

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सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नया संसद भवन बनकर तैयार हो गया है और 28 मई को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस नए भवन का उद्धाटन करेंगे. इसको लेकर देश की राजनीति गरमाई हुई है. लेकिन इन सभी चीजों से परे आज हम आपको पुराने संसद भवन के इतिहास के बारे में बताएंगे.

पुराने संसद भवन का शिलान्यास 12 फरवरी को साल 1921 में हुआ था. इस भवन के निर्माण में कुल 6 साल लगे थे. 1921 में इस भवन का निर्माण शुरु हुआ और 1927 में बनकर पूरी तरीके से तैयार हो गया. पुराने संसद भवन का उद्धाटन 18 जनवरी 1927 को लॉर्ड इरविन के हाथों हुआ था. लॉर्ड इरविन 1926 से 1931 तक भारत के वाइसरॉय थे. यही कारण रहा कि इस भवन का उद्घाटन लॉर्ड इरविन ने किया.

अब अगर आपके मन में ये सवाल है कि इतने विशाल भवन की डिजाइनिंग उस समय किसने की थी. तो चलिए हम बता देते हैं. इस पार्लियामेंट हाउस को ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने डिजाइन किया था. उस समय इस भवन को बनाने में कुल 83 लाख रुपए लगे थे. अब के नए संसद भवन को बनाने में करीब 1200 करोड़ रुपए लगें हैं.

आपको एक रोचक बात बताते हैं पुराना संसद भवन 566 मीटर डायमिटर में बना था. 1956 में जब ससंद में थोड़े और जगह की जरुरत पड़ी, उस वक्त 2 मंजिलों को और जोड़ा गया था. ये भवन आकार में गोल है. इसके बाहरी छोर में 144 विशाल खंभे हैं. इस भवन के बीच में एक गोलाकर हॉल है और उसके इर्द-गिर्द तीन अर्धवृत्ताकार हॉल यानी की सेमीसर्कल हॉल है. जिसमें से एक हॉल को चेंबर ऑफ प्रिंस कहा जाता था. जिसे अब लाईब्रेरी हॉल की तरह इस्तेमाल किया जाता है. दूसरा था स्टेट काउंसिल जिसमें अब राज्यसभा है और तीसरा था सेंट्रल लेजीस्लेटीव असेंबली जिसे अब लोकसभा के लिए इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन नए संसद भवन के उद्घाटन के बाद क्या पुराने ससंद भवन को तोड़ दिया जाएगा. इसका जवाब है नहीं. उद्घाटन के बाद सबसे पहले पुराने भवन की मरम्मत की जाएगी उसके बाद उसके उपयोग के बारे में सोचा जाएगा. इस भवन को एक संगहालय में भी तब्दील किया जा सकता है.

आप सोच रहे होंगे कि ससंद भवन का निर्माण तो 1927 में हुआ था. उस वक्त भारत आजाद नहीं था तो ससंद भवन का निर्माण पहले कैसे हो गया. दरअसल इस भवन को अंग्रेजों ने अपने लिए बनाया था. अंग्रेजों के शाषन काल के समय इसे हाउस ऑफ पार्लियामेंट कहा जाता था. इस भवन में ब्रिटिश सरकार की विधान परिषद काम करती थी. आजादी के बाद उसी विधान परिषद को संसद भवन के रुप में इस्तेमाल किया जाने लागा और आज 96 साल बाद इस संसद भवन का गौरवपूर्ण इतिहास का समय अब अपने आखरी पड़ाव पर है. 28 मई को नए संसद भवन के उद्धाटन के बाद से भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत नए संसद भवन में लगा करेंगी. पर पुराने संसद भवन का इस्तेमाल भी सरकारी आयोजनों के लिए जारी रहेगा. जाहिर है, जिस संसद में कभी पंडित नेहरु से लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने देश की विकास गाथा लिखी आज उसे संसदीय कामकाज की आधुनिकता को ध्यान में रखते हुए परित्यक्त किया जा रहा है.