माधवी पाल गढ़ती हैं मां की आकर्षक मूर्तियां

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मनोज कुमार कपरदार

रांची : माटी आधार है सृष्टि का और मन का भी। माटी से मनुष्य बना है, और माटी से मनुष्य बनाता भी है। जरूरत है उस नजर की, जो माटी के गुण रूप को पहचान सके। शहर की वह खास जगह जहां दुर्गोत्सव पर आपकी नजर हर वक्त जाती है और अटकी रह जाती है। बस, उसी जगह स्थापित की जाती है मां की मूर्तियां और वहीं इसकी सजावट की उपयोगिता है। मूर्ति निर्माण की यह कला नई नहीं है, जहा इन्हें अब फैशनेबल माना जा रहा है। मिट्टी की बनी मूर्तियों को मूर्तिकार खास विधि से, खास रंगों से सजाते हैं। बारीक से बारीक काम करते हैं और तब इनके रंग बड़े स्वाभाविक रूप से फैलते हैं और तब कुछ अलग ही रूप ले लेते हैं। तब श्रद्धा से श्रद्धालु उनके सामने सिर झुका देते हैं। तब क्या आपको ऐसा नहीं लगता है कि किस मूर्तिकार ने इसे गड़ा हैं, किसने ब्रश उठाकर इसे रंगा है। इसकी सजावट कैसी है यह जानने का प्रयास किया रांची की महिला मूर्तिकार माधवी पाल से। अनेक परेशानियों के बावजूद इनके रंगों में एक अजीब किस्म का बहाव है।

माधवी पाल ने इसका प्रशिक्षण कहीं से नहीं ली, बल्कि परिस्थिति ने इन्हें मूर्तिकार बना दी। शुरू से ही मूर्ति निर्माण कार्य देखती रही। पति मूर्तिकार थे। उनके देहांत के बाद इन्होंने इसे विपरित परिस्थिति में संभाली और 12 वर्षो से मूर्ति निर्माण कार्य में लगी हुई है। आज मूर्तिकार के रूप में इनकी एक अलग प्रतिष्ठा बनी हुई है। माधवी पाल मूर्तिकला निर्माण में इसकी खूबसूरती पर विशेष ध्यान देते हैं। मूर्तिकला को ये अपना धर्म एवं निष्ठा के साथ जिविकोपार्जन का साधन बताते हैं। अपनी हाथों से बनयी इन मूर्तियों का जब प्राण प्रतिष्ठा होती है, तब गर्व का अनुभव होता है हालांकि ये अपनी इस कला को लेकर आशावान नजर नहीं आते। क्योंकि समय और परिस्थिति के अनुसार बहुत कुछ बदलाव हुआ है। रांची में मूर्तिकला के भविष्य पर कहती हैं कि आज कला का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता है। चेहरे के लिये इन्हें गंगा मिट्टी कोलकाता से मंगवाना पड़ता है। अब उसकी कीमत में भी बहुत वृद्धि हो गयी है। मूर्ति निर्माण का कार्य भी सालों भर नहीं चलता है। सबसे बड़ी समस्या तो तब होती है, जब मूर्ति निर्माण के समय बारीश होती है। बारीश से मूर्ति को सुरक्षित बचाये रखना सबसे कठिन काम होता है। फिर जब कोई श्रद्धालु मूर्ति की सुंदरता का गुणगान करते हैं तो मन गदगद हो जाता है और जब विसर्जन होता है तो मन द्रवित हो जाता है।