मध्यप्रदेश में महिलाएं किसकी होंगी तारणहार

360° Editorial Ek Sandesh Live

क्रांति कुमार पाठक
मध्य प्रदेश में आखिरकार विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में मतदान के बढ़े प्रतिशत ने अब तक के सारे मापदंड ध्वस्त कर दिए हैं। चुनाव आयोग के अंतिम आंकड़े के मुताबिक 2023 के चुनाव में मतदान का प्रतिशत 77.15 रहा है, जो पिछली बार की तुलना में 1.52 फीसदी अधिक है। यह मतदान किसके पक्ष में जाएगा, एकाएक यह कहना कठिन है, क्योंकि भाजपा जहां ‘लाडली बहना योजना’ के अंतर्गत एक करोड़ 31 लाख महिलाओं को 1250 रुपए का प्रति महीना लाभ देना अपने पक्ष में मान रही है, वहीं कांग्रेस ‘नारी सम्मान निधि’ के रूप में 1500 रुपए देने की घोषणा को जीत का मजबूत आधार मान रही है। यहां मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच है और स्पष्ट है, दोनों बड़े दलों के केंद्र में महिलाएं हैं।
 2018 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 1.52 फीसदी मतदान अधिक हुआ है। इसे लाडली बहनों का करिश्मा बताया जा रहा है। इस बार शहर से कहीं ज्यादा ग्रामीण मतदाता की मतदान के प्रति जागरूकता दिखी है। इसीलिए गांवों में महिलाओं की लंबी-लंबी कतारें देखने में आई। ऐसे में अब सरकार और विपक्ष की साइड वाली बेंचों पर कौन बैठेगा, इसका फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है। भले ही राजनीतिक दलों के दिग्गजों ने इस बार भी रोड शो और चुनाव प्रचार में जमकर जुबानी तीर चलाए हैं, लेकिन वोटर साइलेंट रहे और कुछ जाहिर नहीं किया। ऐसे में अब 3 दिसंबर को ही साफ होगा कि ऊंट किस करवट बैठी है।
             फिर भी इतना तो साफ है कि इस प्रदेश में मुकाबला दो बड़ी पार्टियों के बीच ही है। दोनों दल बखूबी यह जानते हैं कि सत्ता में आने के लिए जिस ताले को खोलने की जरूरत होगी, उसकी चाबी मालवा-निमाड़ के वोटरों के ही पास है। यही वजह है कि इस बार भी इस इलाके में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दूसरे दिग्गजों के साथ-साथ गांधी परिवार ने भी आक्रामक प्रचार किया। वैसे, पिछले विधानसभा चुनाव में यहां के वोटरों ने कांग्रेस पर भरोसा जताया था। 66 सीटों वाले मालवा-निमाड़ के इलाके से कांग्रेस ने 35 सीटें जीती थीं और भाजपा ने 28 सीटें। जबकि 2013 में भाजपा ने यहां की 57 सीटें हासिल की थीं। यानी पिछले चुनाव में आदिवासियों, किसानों और व्यापारियों के इस गढ़ में कांग्रेस ने सेंध लगाकर भोपाल पर अपना दावा ठोका था। उस वक्त कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा की थी। शायद इसलिए इस बार जब राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के लिए इस इलाके को चुना, तो किसी को हैरानी नहीं हुई। पिछले साल राहुल गांधी ने टंट्या भील के प्रति सम्मान भी दिखाया और उज्जैन में महाकालेश्वर के दर्शन भी किए। इस बार भी प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार का आगाज धार के जैन तीर्थ मोहनखेड़ा में माथा टेकने के साथ किया। जाहिर है, कहीं ना कहीं इनकी नजरें भील आदिवासी वोट और एसटी की उन 22 सीटों पर रही है, जिनमें से 15 कांग्रेस ने पिछली बार अपने पाले में की थीं।
 वहीं भाजपा मालवा को कितनी गंभीरता से लिया  है, इसका अंदाजा इसी बात से मिलता है कि वोट डाले जाने से ऐन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इंदौर में मेगा रोड शो कर प्रचार के आखिरी दौर में हवा अपने पक्ष में करने की पुरजोर कोशिश की। यहां के आदिवासियों को साधने के लिए सीधी कांड का डैमेज कंट्रोल करते हुए खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनावी सभा में कहना पड़ा कि उनकी पार्टी ने ही आदिवासी बेटी को देश के सर्वोच्च पद पर बिठाया। इसी साल जुलाई में अमित शाह कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए भोपाल में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस रद्द कर इंदौर पहुंच गए थे। इंदौर वाले इलाके में तो संघ का खासा प्रभाव रहा है और पार्टी कैलाश विजयवर्गीय से उम्मीद कर रही है कि वह आस-पास की सीटों पर भी पार्टी का कुछ तो कल्याण करेंगे ही। मगर मालवा-निमाड़ में इस बार सीन पहले से अलग है। यहां पहले ज्यादा बारिश और फिर कम बारिश ने सोयाबीन के किसानों को गहरा घाव दिया है। इसके साथ ही यूरिया को लेकर पूरे राज्य में किसानों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। घंटों लाइन में खड़े होने के बाद भी उनको यूरिया नहीं मिला। किसान शिवराज सरकार से खासे नाराज हैं। खासकर मालवा के किसानों ने इन मुद्दों को लेकर विरोध-प्रदर्शन कर अपना गुस्सा जाहिर भी किया था। राज्य में युवाओं ने भी एंटी इनकंबेंसी के असर को हवा दी है। युवा बेरोजगारी से तो जूझ ही रहे हैं, साथ ही कई कोर्सों के एग्जाम में देरी और भर्तियों में होने वाली धांधली से भी निराश हैं। एक आंकड़े के मुताबिक राज्य में मौजूदा वक्त में 39 लाख बेरोजगार युवा हैं। ऐसे में इस चुनाव में पहली बार वोट डालने वाले 22 लाख 36 हजार वोटर चुनाव नतीजे बदलने की कुव्वत रखते हैं।
              हालांकि, राज्य में युवा चार फीसदी के आसपास हैं, जिन्हें अपने पाले में रखने के लिए कांग्रेस ने वादों की एक फेहरिस्त सामने रखी है। इनमें सरकारी भर्ती का कानून, स्टार्ट अप नीति और 1500-3000 रुपये हर महीने आर्थिक मदद शामिल है। वहीं भाजपा हर एसटी ब्लॉक में एकलव्य विद्यालय बनाने और 3,800 टीचरों की भर्ती करने की बात की है। साथ ही वह हर परिवार में एक रोजगार या खुद के रोजगार के मौके मुहैया कराने का जिक्र भी किया है। बात किसानों की करें तो उनके लिए गेहूं और धान के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी का जिक्र दोनों दलों ने किया है। महिला वोटर को यहां के चुनाव में किंगमेकर माना जा रहा है। इसकी वजह भी साफ है। राज्य में महिला वोटरों की तादाद 2 करोड़ 72 लाख तक पहुंच गई है और करीब 29 सीटें ऐसी हैं, जिन पर आधी आबादी का वोट बाजी पलट सकता है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक के भाषणों में महिलाओं के लिए योजनाओं का जिक्र होता दिखा। शिवराज सिंह चौहान अपनी दावेदारी लाडली बहना स्कीम के बल पर ही सामने रख रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि महिलाएं उनकी नैया एक बार फिर पार लगा देंगी। अधिकतर इलाकों में महिलाएं भी इस बात को मान भी रही हैं कि लाडली योजना की किस्तें उनके अकाउंट में आ रही हैं। हालांकि लाडली बहना स्कीम के असर को काटने के लिए कांग्रेस ने भी महिला वोटर को फोकस कर अपना कैंपेन चलाया। लाडली बहना के जवाब में कांग्रेस नारी सम्मान योजना ले आई। महिलाओं के लिए खासकर लाडली बहना योजना और नारी सम्मान योजना को लेकर जिस तरह से दोनों पार्टियों में होड़ दिखी, उससे समझ में आता है कि महिला वोट पर कब्जे को लेकर दोनों राजनीतिक दल कितने बेचैन थे। ऐसे में लगता है कि मध्यप्रदेश में महिलाएं ही निर्णायक की भूमिका निभाती दिख रही हैं।