आज भारतीय संविधान के निर्माता भारत रत्न डॉ भीम राव अंबेडकर की 132वीं जयंती है. बाबा साहेब अंबेडकर का जन्म मध्यप्रदेश के महु गांव में 14 अप्रैल 1891 में हुआ था. महार जाति में पैदा हुए अंबेडकर मात्र 9 साल की उम्र में पहली बार जातीय भेदभाव के शिकार हुए थे. दलित समुदाय से आने के कारण उन्होंने कई बार जातीय भेदभाव का सामना किया. जानकार बताते हैं कि आंबेडकर अपने ज़माने में भारत के संभवत: सबसे पढ़े-लिखे व्यक्ति थे. उन्होंने मुंबई के मशहूर एलफ़िस्टन कॉलेज से बीए की डिग्री ली थी. बाद में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से उन्होंने पीएचडी की डिग्री प्राप्त की.
आज अंबेडकर की जयंती विशेष के मौके पर हम बताएंगे आपको कि 9 साल की उम्र से जातीय वैमनस्यता का शिकार हुए अंबेडकर ने अपने जीवन के आखिरी वक्त तक कैसे जाति के खिलाफ लड़ाई जारी रखा.
इतिहासकार बताते हैं कि कालांतर में सवर्ण हिंदुओं का एक सुधारवादी हिंदू संगठन हुआ करता था, जिसका नाम था जात-पात तोड़क मंडल. सन 1936 में इसी सुधारवादी हिंदू संगठन का लाहौर में अधिवेशन होना था. जात-पात तोड़क मंडल के लाहौर के वार्षिक अधिवेशन में अंबेडकर अध्यक्षीय भाषण देने वाले थे. पर यह भाषण उन्हें कभी देने नहीं दिया गया. लाहौर अधिवेशन के लिए अंबेडकर ने जो अध्यक्षीय भाषण तैयार किया था, उसमें उन्होंने साफ-साफ लिखा था कि एक हिंदू के तौर पर यह उनका आखिरी भाषण होगा. इस अधिवेशन के आयोजकों को अंबेडकर के भाषण के ड्राफ्ट में कई अंश नागवार गुजरे. आयोजकों ने अंबेडकर से निवेदन किया कि वे अपने व्याख्यान के कुछ अंश बदल दें. पर संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर राजी नहीं हुए.
आखिर में आयोजकों को ये अधिवेशन ही रद्द करना पड़ा. अंबेडकर के जिस व्याख्यान को अधिवेशन में देने से रोका गया, उन्होंने उसी व्याख्यान को एक पुस्तक के तौर पर बाद में प्रकाशित भी कराया, जिसकी कीमत उस दौरान मात्र आठ अने थी. इतिहास गवाह है कि उनकी किताब “जाति का विनाश” (Annihilation of Caste) आज जातिय व्यवस्था से संघर्ष करने वालों के हाथों में एक दुर्दम्य हथियार साबित हुआ है. अंबेडकर की उस किताब का नाम “जाति का विनाश” है. डॉ भीम राव अंबेडकर हिंदू धर्म के जातीय व्यवस्था के धुर-विरोधी थे. जात-पात तोड़क मंडल के वार्षिक अधिवेशन में दिया जाने वाला अंबेडकर का अध्यक्षीय भाषण पूर्ण रुप से, हिंदू धर्म से जातीय व्यवस्था को नष्ट करने पर ही केंद्रित था. हालांकि वे भाषण अंबेडकर कभी दे ही नहीं पाए. क्योंकि स्वागत समिति ने अधिवेशन को यह कहकर रद्द कर दिया था कि डॉ अंबेडकर के व्याख्यान में व्यक्त किए गए विचार अधिवेशन को स्वीकार नहीं होंगे.
अंबेडकर ने, भाषण नहीं दिए जाने पर तब जवाब देते हुए कहा था कि किसी दलित को हिंदू संगठन के कार्यक्रम में भाषण देने की इजाजत भला कैसे मिल सकती थी. क्योंकि “मनुस्मृति” के तहत ये शास्त्रीय निर्देश है कि ब्राह्मण को छोड़कर हिंदू किसी भी अन्य को अपना गुरू नहीं मान सकते. “मनुस्मृति” के 10वें अध्याय के तीसरे स्लोक में साफ-साफ निर्देशित है कि “वर्णानाम ब्राह्मणों गुरु.” यानी हर वर्ण का गुरु ब्राह्मण कुल में पैदा कोई पुरोहित ही होगा.
बाद में उन्होंने अपने उसी भाषण को जब पुस्तक के रुप में प्रकाशित कराया, तो जाति का विनाश नामक इस किताब ने तब महात्मा गांधी का ध्यान भी अपनी ओर खिंचा था. गांधी ने किताब पढ़कर टिपण्णी की कि डॉ अंबेडकर हिंदुत्व के लिए बहुत बड़ी चुनौती हैं. गांधी ने तब कोट करते हुए सार्वजनिक तौर पर लिखा था कि अंबेडकर की किताब जाति का विनाश लोगों को बस इसलिए पढ़नी चाहिए ताकि लोग उनके विचारों पर घोर आपत्ति जता सकें.
दिलचस्प है कि भारत के समाजिक सुधारवाद के दो प्रमुख झंडाबरदार रहे अंबेडकर और गांधी के बीच कभी नहीं बनी. अंबेडकर गांधी को महात्मा तक कहने के खिलाफ थे, जबकि गांधी अंबेडकर को हिंदूत्व के लिए सार्वजनिक तौर पर सबसे बड़ी चुनौती मानते थे.
बहरहाल, भारत रत्न डॉ अंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” अपने आप में जातीय व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष के लिए एक ताकतवर हथियार है. आज जब समुचे देश में जातीय जनगणना चल रही है, बिहार में जब जातियों को अलग-अलग कोर्ड नंबर से पहचान दिए जानी की कोशिश है, तब बाबा साहेब अंबेडकर आपके सहसा याद आएंगे. अंबेडकर का जातीय विमर्श हिंदू समाज के नैतिक पुनरुत्थान पर केंद्रित था. अपनी किताब जाति का विनाश में उन्होंने तथ्यों सहित यह बताया है कि राजनीतिक, आर्थिक सुधार के लिए सामाजिक सुधार क्यों जरुरी है, जिस सामाजिक सुधार की शुरुआत सिर्फ औऱ सिर्फ हिंदू धर्म के जाति के विनाश से ही संभव है. इस किताब में वे कहते हैं कि जाति का उद्देश्य वंश की विशुद्दि और रक्त की पवित्रता को कायम रखना है. जबकि जीव-वैज्ञानिकों का कहना है कि अमिश्रित रक्त के लोग कहीं नहीं पाए जाते. दुनिया के सभी हिस्सों में सभी रक्तों का अंतरमिश्रण हुआ है. अंबेडकर अपनी किताब “जाति के विनाश” में वैज्ञानिकों को कोट करते हुए ये बात कहते हैं. अंबेडकर अपनी इस किताब में तथ्यों सहित यह बतलाते हैं कि उच्च जातियों ने निम्न जातियों को निम्न बनाए रखने के लिए कैसे साजिश रची है.
इसके उदाहरण स्वरुप वे 4 जनवरी 1928 के “टाइम्स ऑफ इंडिया” की एक रिपोर्ट का हवाला अपने किताब में देते हुए वे कहते हैं कि इंदौर जिले के सवर्ण हिंदू यानी राजपूतों और ब्राह्मणों ने अपने-अपने गांव की दलित जातियों को आदेश दिया है कि हिंदूओं के सभी विवाह में दलित बारात के आगे-आगे बाजा बजाएंगे. दलित कभी भी मेहनाताना की मांग किए बगैर हिंदूओं के लिए सेवाएं प्रदान करेंगे. इसके एवज में ऊंची जातियों के लोग दलितों को खुशी-खुशी जो कुछ भी अगर दें तो दलितों को उसे स्वीकार करना होगा. अंबेडकर “टाइम्स ऑफ इंडिया” की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आगे कहते हैं कि तत्कालीन इंदौर जिले में ऊंची जातियों का यह सार्वजनिक आदेश था कि दलित महिलाएं हिंदू महिलाओं की प्रसव के समय मौजूद रहेंगी. किसी भी हिंदू रिश्तेदार के घर अगर कोई निधन संबंधित खबर पहुंचानी हो तो खबर पहुंचाने का काम भी दलित महिला ही करेगी.
ऐसे हजारों तथ्यों और आकड़ों सहित अंबेडकर ने यह पूरा व्याख्यान जात-पात तोड़क मंडल के अध्यक्षीय भाषण के लिए लिखा था. जो अब इस किताब “जाति का विनाश” में दर्ज है. इस किताब पर तर्क-वितर्क जरुर किए जा सकते हैं, पर अंबेडकर के मंसूबे पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते. तब तक 35 हजार किताबों भरे लाइब्रेरी के मालिक अंबेडकर ने आखिरकार हिंदू धर्म को त्याग कर अंततः बौद्ध धर्म अपना लिया था. अंबेडकर के करीब साढ़े आठ लाख अनुयायियों ने एक साथ हिंदू धर्म का परित्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया था. इतिहासकार बतातें हैं कि अंबेडकर व उनके अनुयायियों का वो धर्मांतरण दुनिया के सबसे बड़ा धर्मांतरणों में से एक था.
भारतीय संविधान के निर्माता डॉ भीम राव अंबेडकर जिस हिंदूत्व को देखने का सपना अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक देखते रहे वो सपना आज आरएसएस के हिंदूत्व की परिभाषा से वैचारिक मुठभेड़ करता नजर आता है. हिंदू समाज के जिस जातीय व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने जीवनभर विरोध का झंड़ा उठाए रखा, कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि देशभर में जातीय जनगणना जैसे महत्वकांक्षी कार्यक्रम आयोजित कर देश की सरकारों ने अंबेडकर का वह झंडा आज झुका दिया है.
देखना होगा कि प्रमाणिक वैश्विक व्यक्तित्व डॉ भीम राव अंबेडकर की हिंदू समाज में जाति के विनाश की लड़ाई का अग्रदूत क्या वाकई कोई अंबेडकरवादी ही होगा या जात-पात तोड़क मंडल जैसे कोई सुधारवादी हिंदू संगठन.