Ranchi : डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्याल रांची अंतर्गत कुड़ुख विभाग में डॉ. करमा उरांव की द्वितीय पूण्यतिथि आज मनायी गयी। इस पूण्य तिथि के विशेष अवसर पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया। व्याख्यान का विषय था – झारखंड में युवा शक्ति और सामाजिक दायित्व कार्यक्रम के शुरूआत में डॉ. करमा उरांव के छायाचित्र पर पूर्ष्पाण किया गया। इसके पश्चात कुड़ुख विभाग के सहायक प्राध्यापिका सुनिता कुमारी ने करमा उरांव के जीवन विस्तृत से जानकारी देते विषय प्रवेश करायी। कार्यक्रम के अध्यक्षता करते हुए जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के समन्वयक डॉ. विनोद कुमार ने करमा उरावं के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं बौद्धिक उत्थान के लिए उनके किये गये कार्यों की बिंदुवार विश्लेषण प्रस्तुत किये। और कहा कि डॉ. करमा उरांव नौ युवकों की सदैव प्रेरणादायी बने रहेंगे। क्योंकि वे अपने समय में एक युवा शक्ति के रूप आदिवासी के बीच उभरे थे। इस श्रद्धांजली सभा में मुख्य वक्ता के रूप उपस्थित कुड़ुख विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. रामदास उरांव ने करमा उरांव को शिक्षा के क्षेत्र में अविसरणीय योगदान के लिए हमेशा याद किये जाते हैं। वे विद्यार्थी जीवन से ही एक नेता के रूप में अपने आप को स्थापित करने का प्रयासरत रहे। वे एक निडर किस्म के व्यक्तित्व थे। इस अवसर पर कुड़मालि विभाग के डॉ. निताई चंद्र महतो ने करमा उरांव को एक ख्याति प्राप्त मानवविज्ञान बतलाते हुए कहा कि डॉ. उरांव अपने शिक्षा के बलबूते अपने आप को और पूरे उरांव समाज को विश्व के पटल पर एक मानवशास्त्रीय रूप में परिचय देने का कार्य किये। इस अवसर पर नागपुरी के डॉ. मालती बागिशा लकड़ा, मुंडारी के डॉ. शांति नाग, खोरठा के सुशिला कुमारी, खड़िया के शांति केरकेट्टा, हो के दिलदार पूर्ति आदि कई विभाग के शोधार्थी एवं छात्र छात्राएं उपस्थित थे।
कार्यक्रम में मंच संचालन नागपुरी के प्राध्यापक डॉ. मनोज कच्छप एवं धन्यवाद ज्ञापन खोरठा के सुशिला कुमारी ने की बताते चले कि डॉ. करमा उरांव का जन्म गुमला जिला के विशुनपुर प्रखंड स्थित महुवा टोला गांव में 24 अक्टुवर 1952 ई. को हुआ था। वे बचपन से ही एक मेधावी छात्र थे। वे मानव शास्त्र विषय में स्नातक एवं स्नातकोत्तर की डीग्री लेने के पश्चात पीएचडी किया। फिर उनका रांची विश्वविद्यालय के रामलखन सिंह यादव कॉलेज में एक शिक्षक के रूप में योगदान दिया। फिर वे स्नातकोत्तर विभाग में लंबे समय तक विभागाध्यक्ष भी रहे। वे समाजिक विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष भी रहे। वे जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में कुछ समय तक प्रभारी विभागाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किये। वे झारखंड बुद्धिजीवि वर्ग के सदस्य भी थे। इस तरह वे रांची विश्वविद्यालय के कई प्रशासनिक पदाधिकारी के रूप कार्य किये।
