झारखंड में ‘हेमंत दोबारा’ नारा सब पर पड़ा भारी, इंडी गठबंधन को मिला पूर्ण बहुमत

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Eksandeshlive Desk

रांची : झारखंड में इस बार ‘हेमंत दोबारा’ नारा सब पर भारी पड़ा। यहां के मतदाताओं ने इसे सच साबित कर दिया है। हेमंत सोरेन ने झारखंडवासियों को उनके वनाधिकार, जमीन की सुरक्षा और आदिवासी अधिकारों जैसे मुद्दों पर लगातार उनको भरोसा दिलाया और उसी का नतीजा रहा कि झारखंड में एक बार फिर से हेमंत सोरेन की सरकार बननी तय है। इस बार के चुनाव में हेमंत सरकार की मईयां सम्मान योजना ने इंडी गठबंधन के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ है, जिसकी वजह से एक बार फिर झारखंड में हेमंत सोरेन ने बाजी मार ली है। ऐसा पहली बार हुआ है कि झारखंड में किसी की सरकार रिपीट हुई है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने ने चुनाव परिणाम के बाद अपने पहले संदेश में ‘एक्स’ पर लिखा है कि ‘झारखंड जीत गया है’।

81 सीटों में से 71 सीटों पर घोषित किए जा चुके हैं परिणाम

झारखंड की 81 सीटों में से 71 सीटों पर परिणाम घोषित किए जा चुके हैं। अभी तक के आंकड़ों के अनुसार, झारखंड में इंडी गठबंधन 54 सीटों पर चुनाव जीत चुकी है जबकि झारखंड में एनडीए महज 18 सीटों पर चुनाव जीत पायी है। अब झारखंड की सिर्फ 10 सीटों पर फाइनल रिजल्ट आना बाकी है। झारखंड में एक सीट अन्य के खाते में गयी है। राज्य निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 19 सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) को विजय मिली है जबकि 15 सीटों पर बढ़त है। भाजपा को 08 सीट पर विजय तथा 13 सीट पर बढ़त है। कांग्रेस को 08 सीट पर विजय तथा 08 सीट पर बढ़त है। राजद की एक सीट पर जीत तथा तीन सीट पर बढ़त, सीपीआई की दो सीट पर विजय। आजसू को किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली है, सिर्फ एक सीट पर बढ़त है। लोक जनशक्ति पार्टी (रा.) की एक सीट पर जीत हुई है। इसी प्रकार झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) को एक सीट पर जीत हुई है जबकि जदयू को एक सीट पर बढ़त है।

हेमंत सरकार के लिए मास्टस्ट्रोक बना मईयां सम्मान

दरअसल, झारखंड विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले ही हेमंत सोरेन सरकार ने मास्टरस्ट्रोक मईयां सम्मान योजना के रूप में सामने लाया था। इसका फायदा झारखंड की 50 लाख महिलाओं को डायरेक्ट मिला। इस योजना का खास बात यह कि इसके तहत 1000 रुपये मिलने थे लेकिन जैसे ही चुनाव का समय नजदीक आया, हेमंत सोरेन ने इस योजना की राशि 1000 से बढ़ाकर 2500 रुपये कर दी। इसके साथ यह कयास लगाये जाने लगे कि महिलाओं का वोट हेमंत सोरेन की ओर झुक सकता है और वह सच साबित हुआ।

झारखंडवासियों ने हेमंत-कल्पना पर जताया विश्वास

झारखंड विधानसभा के इस चुनाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तथा उनकी विधायक पत्नी कल्पना सोरेन के आक्रामक व शानदान प्रदर्शन के पीछे कई रणनीतिक और परिस्थितिजन्य कारण हैं। यहां के मतदाताओंं ने इन दोनों पर खूब विश्वास जताया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व विधायक कल्पना सोरेने की आक्रामक रणनीति के साथ ही इंडी गठबंधन ने न केवल स्थानीय मुद्दों पर फोकस किया, बल्कि क्षेत्रीय दलों की एकता और भाजपा की रणनीतिक कमजोरियां ने भी उसके अच्छे प्रदर्शन में योगदान दिया। इस प्रदर्शन ने झारखंड में इंडी गठबंधन को नई ताकत दी है। हेमंत सोरेन की कुशल राजनीति तथा उनकी लोकप्रिय व जनकल्याणकारी योजनाएं झारखंड मुख्यमंत्री मईयां सम्मान योजना तथा बिजली बिल माफी ने झारखंड में पुन: जीत दिलाने में कारगर साबित हुई है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस की एकजुटता

झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) राज्य के मतदाताओं पर पहले के बजाय ज्यादा मजबूत पकड़ है। यहां के मतदाता विशेष रूप ये आदिवासी व ग्रामीण समाज उन्हें अपना नेता मानता है। जेएमएम की अपने राज्य में वही पकड़ है, जो अन्य क्षेत्रीय पार्टियों की अपने-अपने राज्यों में है। जेएमएम और कांग्रेस के अलावा इंडी गठबंधन में शामिल अन्य पार्टियां भी अपने वोटर को एकजुट करने में कामयाब रहीं। इस गठबंधन के राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर बने सामंजस्य ने मतदाताओं को बाहर जाने से रोका। यही इंडी गठबंधन की जीत की वजह भी बनी।

आदिवासियों के मुद्दों पर हेमंत की रही पैनी नजर

झारखंड में लगभग एक तिहाई सीटों पर आदिवासी और ग्रामीण मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। हेमंत व कल्पना सोरेन ने लगातार आदिवासियों और ग्रामीणों की समस्याओं पर बात की और उनके मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। उनकी लड़ाई लड़ते हुए नजर आयीं। हेमंत सोरेन व कल्पना सोरेन ने वनाधिकार, जमीन की सुरक्षा और आदिवासी अधिकारों जैसे मुद्दों पर लगातार उनको भरोसा दिलाया। आदिवासी समुदाय ने भी खुलकर उनका समर्थन किया। बीजेपी ने भी इन मुद्दों पर आदिवासी मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश की लेकिन लोगों ने हेमंत सोरेन को ज्यादा भरोसेमंद माना। इसमें आदिवासियों के लिए सरना कोड लागू किए जाने का वादा भी शामिल था। यह इस बार की चुनावी बहस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ था। इस मामले में जेएमएम ने आदिवासी मतदाताओं को समझाने में सफल रहे। सरना धर्म कोड का मतलब है कि आदिवासी अपने लिए एक अलग धर्म के तौर पर पहचान चाहते हैं।

जेल से लौटने के बाद हेमंत सोरेन का बढ़ा कद

ईडी की कार्रवाई के बाद जब हेमंत सोरेन को जेल जाना पड़ा तो उनके प्रति विशेष रूप आदिवासी समाज की एक अलग भावनात्मक जुड़ाव हुआ। जेल जाने से उनका कद छोटो नहीं हुआ, बल्कि पहले के बजाय और कई गुना बढ़ा। झारखंड के मतदाताओं में उनके खिलाफ इस कार्रवाई को केंद्र की बदले की कार्रवाई के तौर पर देखा गया। जेल से निकलने के बाद उनकी लोकप्रियता और मजबूत हुई और वह एक मजबूज नेता के रूप में पूरे चुनावी कैम्पेन में नजर आए। इससे इंडी गठबंधन को बहुत ज्यादा फायदा पहुंचाया। परिवार में हुई बगावत का भी लाभ हेमंत सोरेन को मिला। यह बात भाजपा के खिलाफ गई कि उसने किसी भी तरह सत्ता पाने के लिए मुख्यमंत्री को जेल भेजा और परिवार में तोड़फोड़ की। भाई चंपाई सोरेन और सीता सोरेन ने जब पार्टी बदल ली तो सारी सहानुभूति हेमंत को मिली। भाजपा मुख्यमंत्री हेमंत की घेराबंदी करने में असफल रही। हेमंत सोरेन ने महिलाओं के लिए कई योजनाएं, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम चलाए। इन सरकारी योजनाओं ने मतदाताओं को प्रभावित किया।

भारतीय जनता पार्टी की रणनीति रही विफल

भापजा वैसे तो चुनाव लड़ने में अव्वल पार्टी मानी जाती है और कार्यकर्ता आधारित पार्टी मानी जाती है लेकिन झारखंड के विधानसभा चुनाव में कार्यकर्ताओं के बजाय एजेंसियों पर ज्यादा भरोसा जताया गया। झारखंड में बीजेपी की चुनावी रणनीति में स्पष्टता और मजबूती की कमी नजर आई। कार्यकर्ता निराश व तितर-बितर नजर आए। भाजपा व संघ परिवार में सामूहिकता की कमी रही ताे चुनाव में अन्य राज्यों की नेताओं एवं पदाधिकारियों की भरमार रही। स्थानीय नेता, पदाधिकारी व कार्यकर्ता उपेक्षित रहे। इसके अलावा भाजपा को ऐन वक्त तक सीटों का बंटवारा और उम्मीदवारों का चयन न कर पाने में असमंजस ने भी नुकसान पहुंचाया है। इतना ही नहीं अपनाें की उपेक्षा तथा भीतरघात काे भाजपा के चुनावी रणनीतिकार भांप नहीं पाए, जिससे ज्यादा सीटाें पर नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा बीजेपी की एक कमजोरी यह भी रही कि वह स्थानीय मुद्दों पर फोकस न करके घुसपैठ, हिन्दुत्व व भ्रष्टाचार को एक बड़ा मुद्दा बनाया। भाजपा के चुनावी कैम्पेन में बड़े नेता स्थानीय मुद्दों के बजाय घुसपैठ तथा हेमंत सोरेन पर व्यक्तिगत हमला करते नजर आए। इन सभी ने एनडीए को नुकसान पहुंचाया है। इतना ही नहीं इस बार एनडीए ने झारखंड में खुलकर हिंदुत्व कार्ड खेला था जबकि इंडी गठबंधन की सरकार ने मईयां सम्मान योजना पर खूब फोकस किया, जिसका नतीजा रहा कि उन्हें दोबारा झारखंड की सत्ता हासिल हुई।

इंडी गठबंधन की रणनीति रही कारगर

इंडी गठबंधन ने सीटों का संतुलित बंटवारा कर वोटों के बंटवारे को रोकने का काम किया। यही वो क्षेत्र था जिसमें उसकी प्रतिद्वंद्वी बीजेपी कमजोर साबित हुई। उन्होंने सामूहिक रैलियां कीं और प्रचार अभियानों में गठबंधन की अपनी एकता को दिखाने का काम किया। उन्होंने इसके जरिये मतदाताओं को अपने भरोसे में लेने का काम किया। साथ ही इंडी गठबंधन ने बीजेपी के खिलाफ नैरेटिव खड़ा किया कि ये पार्टी लोकतंत्र और संविधान को कुचलने का काम कर रही है। इंडी गठबंधन ने प्रभावी ढंग से लोकतंत्र और संविधान की रक्षा जैसा भावनात्मक मुद्दा उठाने में सफल रही।

81 सीटों पर दो चरणों में मतदान हुआ था

उल्लेखनीय है कि झारखंड विधानसभा की 81 सीटों पर दो चरणों में मतदान हुआ था। पहले चरण का मतदान 13 नवंबर को और दूसरे चरण का मतदान 20 नवंबर को हुआ था। दोनों ही चरणों में 66 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई थी। राज्य में शांतिपूर्ण तरीके से मतदान हुआ था। इस बार झारखंड चुनाव में लड़ाई इंडी गठबंधन और एनडीए के बीच रहा। इंडी गठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस, राजद और लेफ्ट की पार्टियां शामिल रहीं तो एनडीए में भाजपा, आजसू, जदयू और लोजपा (रा) शामिल थे।