Eksandeshlive Desk
प्रतापपुर(चतरा): प्रखंड में तीन दिवसीय जिउतिया का पर्व पारंपरिक हर्ष व उल्लास के साथ मनाया गया। इसके साथ हीं शनिवार की सुबह व्रतियों के पारण करने के साथ ही जिउतिया पर्व का समापन हो गया । बताते चलें की गुरुवार को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ था। इसके बाद शुक्रवार को महिलाएं अपने पुत्र की दीर्घायु होने एवं जीवन कल्याण के लिए 24 घंटे का निर्जला जितिया व्रत रखकर भगवान की पूजा अर्चना की तथा सुबह से ही निर्जला व्रत धारण कर पूरी पवित्रता एवं भक्ति भाव के साथ आराधना में लीन हो गई। हालांकि निर्जला व्रती महिलाओं ने अपनी जीवटता दिखाते हुए इस दौरान भी अपने घरों का काम काज करने में कोई कोर कसर नही छोड़ी और यही उनका परिवार के प्रति समर्पण उन्हें महान बनाता है। इस दौरान कई घरों में परिवार के अन्य सदस्यों की ओर से व्रतियों को सहयोग भी मिला। शाम में महिलाओं ने परंपरागत तरीके से सजधज कर अपने घर के आंगन में परिवार तथा पड़ोस की अन्य महिलाओं के साथ बैठकर ब्राह्मण देवता के निर्देशानुसार पूजा अर्चना की तथा कथा का वाचन किया। साथ हीं पूजा के दौरान पुत्रों के कल्याण व दीर्घायु होने कि ईश्वर से कामना की।
जिउतिया को लेकर प्रचलित कई प्राचीन मान्यताएं और कथाओं के बारे में बताते हुए पंडित शैलेंद्र पांडे ने कहा की जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत से जुड़ी है। अश्वथामा ने बदले की भावना से उत्तरा के गर्भ में पल रहे पुत्र को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना जरूरी था तब भगवान श्री कृष्ण अपने सभी पुण्य के फल से उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दान दिया। गर्भ मृत्यु को प्राप्त कर पुनः जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। वह बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ। शनिवार की सुबह पूरे विधि विधान के साथ प्रत्येक महिलाएं पूजा पाठ कर पारण के साथ व्रत का समापन किया। पारन के लिए घरों में विशेष व्यंजन बनाने की परंपरा का भी निर्वहन होता है जिसके अंतर्गत 5 से 7 प्रकार की सब्जियां बनाई जाती हैं तथा परिवार के सभी सदस्य व्रती महिला के पारण के पश्चात् एक साथ बैठकर प्रसाद रूपी भोजन ग्रहण करते हैं।