Eksandeshlive Desk
रांची : रमजान के महीने में रोजे रखने की बहुत बड़ी फजीलत है। रोजा आपके अन्दर तकवा, ईमानदारी, सब्र करने का सीधा संबंध स्थापित करने का जरिया है। रोजा गुनाहों को मिटा देता है। उक्त बातें सामाजिक कार्यकर्ता अकिलुर्रहमान ने कही है।
एक बयान में उन्होंने कहा कि रोजा महज खाने पीने से परहेज करने का नाम नही है, बल्कि रोजेदार का रोजा तमाम जिस्म के अजा का रोजा होता है। इस महीने इबादत करने से लोगों के सारे गुनाह माफ हो जाते हैं।
रमजान का महीना सभी महीनों से अफजल है। इस महीना हमे तकवा और परहेजगारी के साथ-साथ गरीबों मजबूर, बेसहारों की मदद करनी चाहिए। रमजान में नफिल नमाज का सबब फर्ज के बराबर मिलता है और फर्ज का सबाब 70 गुना बढ़ जाता है।
रमजान इन्सान के लिए उस नजरिये के अनुसार है जो अपनी कमजोरियों और जुनून के खिलाफ लड़ने की ताकत और एक इंसान को अपने जीवन में लगातार सुधार करने की तालीम देता है। रमजान इंसान के अन्दर की बुराई को मिटाता है।
रमजान महीने का आखरी अशरा नेमतों, मगफिरत का महीना ही नही बल्कि इस आखरी अशरे में जो शख्श अपने करीब की मस्जिद में एतेकाफ करता है। उसे दो उमरे और हज का सबाब मिलता है। साथ ही उस महल्ले में आने वाले बला मुसीबतों से निजात दिलाने वाला है।
इस आखरी महीने में हमें ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करनी चाहिए। साथ ही आस पड़ोस, रिश्तेदारों और गरीबों की दिल खोलकर मदद करनी चाहिए।