संपादकीय : समाज की सोच बदली तो बेटियां छूने लगीं बुलंदियां

Editorial

Alok ranjan jha Dinkar

Ranchi : धीरे-धीरे ही सही, समाज की तस्वीर बदल रही है। पिछले कुछ वर्षों में लोगों की सोच में आए सकारात्मक बदलाव से हर क्षेत्र में बेटियां बुलंदियों को छू रही हैं। यह सरकार और समाज के संयुक्त प्रयास का ही परिणाम है कि अब लोग कहते हैं कि एक महिला पढ़ेगी तो दो घरों को रोशन करेगी, जबकि पहले सोच यह थी कि बेटी को पराए घर में जाना है, इसलिए पढ़-लिखकर क्या करेगी। आज बेटियां न केवल स्कूली शिक्षा से लेकर मेडिकल, इंजीनियरिंग, प्रशासनिक सेवाओं, सेना और खेल के मैदानों तक सफलता का परचम लहरा रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता के नए आयामों को छू रही हैं। घर से लेकर बाहर तक समान अवसर मिलने के कारण वे जीवन में आगे बढ़कर परिवार, गांव, जिला, राज्य और देश की प्रतिष्ठा बढ़ा रही हैं। बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन, हौसला और संसाधान की जरूरत होती है, जो उन्हें परिवार, समाज और सरकार से मिल रही है। परिणाम स्वरूप न केवल स्कूलों और कॉलेजों में छात्रों की तुलना में छात्राओं की संख्या बढ़ रही है, बल्कि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी महिला अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ रही है।

यह सुखद अहसास है कि बिहार इंटरमीडिएट के मंगलवार को जारी परिणाम में पिछले साल की तरह ही इस बार भी बेटियों ने बाजी मारी है। परीक्षा में कुल 86.50 प्रतिशत परीक्षार्थी सफल रहे और तीनों संकाय में छात्राएं टॉपर रहीं। पश्चिम चंपारण की बेतिया स्थित राज्य संपोषित एसएस प्लस टू स्कूल हरनाटांड की छात्रा प्रिया जायसवाल साइंस टॉपर बनी है। वहीं कॉमर्स में वैशाली की रौशन कुमारी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है, जबकि आर्ट्स में हाजीपुर की छात्रा अंकिता कुमारी सबसे अव्वल रही है। साइंस टॉपर प्रिया ने अपनी सफलता का श्रेय अपने परिजनों और शिक्षकों को दिया है। बता दें कि बिहार बोर्ड इंटरमीडिएट की परीक्षाएं 1 से 15 फरवरी तक आयोजित की गई थी। इसमें लगभग 12 लाख, 92 हजार, 313 परीक्षार्थी शामिल हुए थे, जिसमें करीब 6 लाख, 50 हजार, 466 छात्र और लगभग 6 लाख, 41 हजार, 847 छात्राएं शामिल हुई थीं। ये परीक्षाएं 38 जिलों में 1,677 केंद्रों पर आयोजित की गई थी। इसमें कुल 11 लाख, 07 हजार, 213 छात्र-छात्राएं सफल हुए हैं। यह परिणाम भी साबित करता है कि आज की बेटियां न केवल बेटों को कड़ी टक्कर दे रही है, बल्कि अपनी मेहनत और लगन से वे शानदार सफलता भी प्राप्त कर रही हैं।

शिक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ता बेटियों का बोलबाला लोगों में बढ़ती जागरूकता का भी परिणाम है। बिहार की बात करें तो राज्य सरकार की नौकरियों में महिलाओं को दिये जा रहे आरक्षण का सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके साथ ही सरकार के स्तर पर उठाए गए कई अन्य महत्वपूर्ण कदम भी महिला सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभा रहे हैं। स्कूली छात्राओं को साइकिल देने की योजना हो या कॉलेज और विश्वविद्यालय से पासआउट महिलाओं को नकद पुरस्कार देने की स्कीम ने बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा देने का काम किया है। परिणाम स्वरूप कॉलेजों में भी छात्राओं की संख्या बढ़ी है। चूंकि लड़कियों की सुरक्षा और शिक्षा से राष्ट्र का भविष्य उज्ज्वल होता है, इसलिए वर्ष 2015 में भारत सरकार ने ”बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” का नारा दिया, जो एक दशक बाद निश्चित रूप से लड़कियों के अधिकारों के प्रति जागरूकता का प्रतीक बन चुका है। इसने न केवल बच्चियों के प्रति समाज का नजरिया बदलने में काफी हद तक सफलता हासिल की है, बल्कि इससे लिंगानुपात और स्कूलों में बालिकाओं के पंजीकरण में भी काफी सुधार आया है। यह सच है कि बेटों के मुकाबले बेटियों की स्थिति में पहले से काफी सुधार हुआ है, लेकिन अब भी हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है।

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