Eksandeshlive Desk
नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि यह दुनिया दो विकल्पों की दुनिया से थक और लड़खड़ा चुकी है और तीसरे मध्यम मार्ग की तलाश में भारत की ओर देख रही है। ऐसे में हमें दुनिया को भारतीयता पर आधारित मॉडल देने होंगे। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता से दूर होने के लिए मन और विचार से भी भारतीयता को अपनाना होगा। डॉ. भागवत ने मंगलवार को दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रकल्प अंतर राज्य छात्र जीवन दर्शन (सीईआईएल) के नवनिर्मित केंद्रीय कार्यालय ‘यशवंत’ का उद्घाटन किया। इसके बाद डॉ. भागवत ने बाल भवन में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। कार्यक्रम में केंद्र और दिल्ली सरकार के मंत्रियों सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया।
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने नए कार्यालय के उद्घाटन की शुभकामना देते हुए संघ प्रेरित छात्र संगठन को अपने ध्येय वाक्य ज्ञान, शील और एकता का ध्यान कराया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी परिषद के 58 लाख कार्यकर्ता हैं। इसके बाद भी विद्यार्थी संगठन को विस्तार की दृष्टि से अभी काफी कुछ करना है। वहीं भावनात्मक एकता के अभाव को देखते हुए परिषद के लिए काफी काम बाकी है। ज्ञान एकता के भाव से पैदा होता है और भारत की सनातन परंपरा की दृष्टि एकता की ही है। इसके साथ शील होना जरूरी है, नहीं तो ज्ञान भी किसी काम नहीं आता है। उल्लेखनीय है कि यशवंतराव केलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता थे। उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के वास्तुकार के रूप में जाना जाता है। ‘यशवंतराव केलकर’ की संगठन क्षमता की तुलना डॉ केशव बलिराम हेडगेवार से करते हुए संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने कहा कि उनसे प्रेरणा लेते हुए कार्यकर्ताओं को काम करना चाहिए। उनके जाने के बाद हमें उनके ही जैसा कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता घटक की तरह होता है और वह सम्पूर्ण का प्रतिनिधित्व करता है। उसमें संभावना बीच रूप में मौजूद होती है। छात्र कार्यकर्ताओं को भी संगठन का प्रतिनिधि बनना चाहिए और अपने आचरण से इसके ध्येय को सार्थक करना चाहिए।