व्यक्ति के अन्दर जन्मजात विचारो का विकस हो: प्रो रवि के एस चौधरी

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Eksandesklive Desk

हजारीबाग: विनोबा भावे विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में शनिवार को नई शिक्षा नीति 2020 मे दर्शन, चितन एव जीवन-दर्शन विषय पर चांसलर लेक्चर सीरिज का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष डॉ अमित कुमार सिंह ने की। कार्यक्रम मे विषय प्रवेश करते हुए डा अमित ने कहा कि पूर्व स्थापित भारतीय ज्ञान परंपरा को नई शिक्षा नीति 2020 मे फिर से जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। मैकॉले की शिक्षा नीति से हटकर मानव जीवन के विशिष्ट अवशयकताओ को ध्यान मे रखते हुए बदलाव किया गया  है। इसमें रोजगार-परक शिक्षा पर भी जोर है। खास बात है कि इसके द्वारा गुरू-शिष्य परंपरा को जीवित करने का प्रयास किया गया है।  

लेक्चर सीरिज को संबोधित करते हुए मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो मिथिलेश कुमार सिह ने नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्विरोध के बारे मे बताया। शिक्षा हर दौर मे नये नये प्रयोग से गुजरी है। कभी मैकाले ने अंगेजी पर जोर दिया। लेकिन आज नई नीति मातृभाषा  पर जोर दिया  है। प्राचीन भारत मे हम देखते है कि वैदिक ज्ञान की भाषा संस्कृत, प्राकृत आदि थी।  उन्होंने बताया कि आज के युवा ज्ञान परंपरा और लोक परंपरा को नही जानते है। ज्ञान परंपरा मे जो सार है उसको कैसे गढ़े उस पर बात होनी चाहिए। नयी शिक्षा नीति सिर्फ कागज पर सीमित नही होनी चाहिए बल्कि धरातल पर भी उतरनी चाहिए। शिक्षा नीति सत्ता के अनुसार काम करती है और बदलाव भी उसी अनुसार होता है। शिक्षा मे सबसे ज्यादा प्रयोग हुआ है। मुख्य वक्ता के रूप मे सिध्दु कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका के स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग के प्रोफेसर रविन्द्र कुमार सिंह चौधरी ने अपने संबोधन मे कहा कि दर्शन और जीवन पद्धति को लेकर नयी शिक्षा नीति 2020 ने उल्लेखनीय योगदान किया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मे 11  बार दर्शन शब्द का प्रयोग हुआ है। मेटा लर्निग पर जोर है। दोबारा विचार करने की बात की गई है। प्रोफेसर चौधरी ने बताया कि नई शिक्षा नीति मे नीति की परिभाषा और सिद्धांत पर अन्तर बताया गया है। नीति मे तो बदलाव हो सकता है लेकिन सिद्धांत मौलिक होते है। नई शिक्षा नीति 2020 का मुख्य आधारभूत सिद्धात शिक्षा एक सार्वजनिक सेवा है। नई शिक्षा नीति 2020 मे कहा गया है कि व्यक्ति के अन्दर संभावना है तथा जन्मजात विचार है जिसको विकसित किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि दर्शनशास्त्र जीने की प्रेरणा देता है। जीवन दर्शन के अनेक रूप है। शिक्षा गुणवत्तापूर्ण होनी चाहिए। कार्यक्रम मे विशिष्ट अतिथि डॉ मंजुला संगा ने भी सभा को संबोधित किया। कार्यक्रम मे अंगेजी  विभागाध्यक्ष डॉ रिजवान अहमद,  उर्दू  विभागाध्यक्ष डॉ एस जेड हक, डॉ राजकुमार चौबे, बरही डिग्री महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ जयप्रकाश आनंद, सहायक प्राध्यापक डॉ सरिता, डॉ ज्योति, डॉ यामिनी सहाय, विजय कुजुर,  डॉ जे आर दास, शोधार्थी डॉ अमित रंजन, डॉ आएशा फातमा , अनिल रविदास, मोहम्मद फजल, पूजा कुमारी अभिषेक कुमार, सबा और चतुर्थ और दितीय समसत्र के विधार्थी उपस्थित थे।