Nutan Kachhap
लोहरदगा: रविवार को शारदीय नवरात्र आठवां दिन देवी महागौरी स्वरूपा अधिष्ठात्री देवी का पूजा पाठ किया गया। महागौरी अक्षत सुहाग की अधिष्ठात्री हैं। कुंवारी कन्याओं की भी आप देवी हैं। माँ महागौरी नारी शुलभ गुणों के लिए विख्यात हैं। इनकी आराधना से संसार की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। सौंदर्य इनको प्रिय है। इनका वर्ण गौर है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के पुष्प से की गई है। श्वेत वस्त्र धारण करने वाली देवी महागौरी का वाहन वृषभ है। चतुर्भुजी माँ एक हाथ अभय मुद्रा में है तथा दूसरा हाथ त्रिशूल धारण की हुई है। तीसरे हाथ में डमरू और चौथा हाथ आशीर्वाद मुद्रा में है। देवी शास्त्र के अनुसार भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए देवी ने कठोर तप किया। तप के कारण इनका पूरा शरीर काला पड़ गया। तप से प्रसन्न हो कर भगवान शंकर ने इन्हें गंगाजल से गौर वर्ण किया। श्रीदुगासप्तशती के अनुसार असुरों को आसक्त करने के लिए देवी गौरवर्ण में अवतरित हुई। चंड- मुंड ने उन्हें देखकर शुम्भ को बताया। तब उसने इनको प्राप्त करने के लिए नाना प्रकार के प्रपंच किया और अंततः देवी ने धूम्रलोचन, रक्तबीज, चंड-मुंड तथा शुम्भ-निशुम्भ आदि समस्त असुरों का वध किया। संग्राम में ये अनेकानेक स्वरुपों के साथ प्रकट हुई और फिर महागौरी के रूप में एकाकार हो गई।